खिचीं हुई है एक
अन्तर्द्वन्द्व की अभेद्य दीवार
हर बार की तरह
इस बार भी लगता है
एक कोशिश और यह
बस..,
भरभरा कर गिरने ही वाली है
मगर कहाँ..,
हर बार की तरह इस बार भी
मेरे यक़ीन का ‘और’ और.., ही रहा
अंगुलियों से रिसती लालिमा
के साथ..,
हथेलियों की थकावट
यह याद दिलाने के लिए
काफ़ी है कि
प्रयासों में ही कहीं कमी रह गई है
कोशिश जारी रखनी चाहिए
थोड़ी मेहनत की और दरकार होगी
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