दिन थक गया चलते चलते और अब तो
सूरज की तपिश भी बुझ सी गई है …,
आओ ! हम भी सामान समेट लें ।
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हवाएँ चिंघाड़ कर धकेलती रही टफण्ड ग्लास
और वह भी टिका रहा स्थितप्रज्ञ सा…,
जीने का सलीका कभी-कभी यूँ भी दिखता है ।
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बेज़ुबान अनगढ़ पत्थरो के बीच से
बह निकला कल-कल करता जल स्त्रोत..,
वक़्त के साथ ख़ामोशी भी बोलना सीख जाती है ।
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सुंदर और भावपूर्ण, वाह वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आ. ओंकार सिंह ‘विवेक’ जी ।
हटाएंबेज़ुबान अनगढ़ पत्थरो के बीच से
जवाब देंहटाएंबह निकला कल-कल करता जल स्त्रोत..,
वक़्त के साथ ख़ामोशी भी बोलना सीख जाती है ।.. वाह वाह!बहुत सुंदर 👌
बहुत बहुत आभार अनीता जी ! सस्नेह.. ,
हटाएंबेज़ुबान अनगढ़ पत्थरो के बीच से
जवाब देंहटाएंबह निकला कल-कल करता जल स्त्रोत..,
वक़्त के साथ ख़ामोशी भी बोलना सीख जाती है ।
हर त्रिवेणी लाजवाब । 👌👌👌👌
सृजन पर आपकी सराहना हृदय को प्रसन्नता और लेखनी को ऊर्जा प्रदान करती है । स्नेहिल सादर आभार आ . दीदी 🙏
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी !
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
पाँच लिंकों का आनन्द के आमन्त्रण के लिए आपका बहुत बहुत आभार श्वेता
हटाएंजी !
जी दी,
जवाब देंहटाएंहम दो बार आमंत्रण प्रेषित किये पर शायद स्पेम में जा रही .. दी कृपया आप देखिये न।
सादर
थैंक्यू श्वेता.आपने सही कहा अभी देखा तो पब्लिश कर दिया ।सस्नेह..।
हटाएं
जवाब देंहटाएंवक़्त के साथ ख़ामोशी भी बोलना सीख जाती है ।बहुत ही सटीक सार्थक बात कही है आपने । सराहनीय पोस्ट ।
सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना हेतु बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी ! सादर सस्नेह…,
हटाएंदिन थक गया चलते चलते और अब तो
जवाब देंहटाएंसूरज की तपिश भी बुझ सी गई है …,
आओ ! हम भी सामान समेट लें ।
धीरे धीरे समान समेटना ही पड़ेगा ☺️
जीवन की सीख देती बहुत सुंदर त्रिवेणी।
सादर नमस्कार मीना जी 🙏
सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना हेतु बहुत बहुत आभार कामिनी जी ! सादर सस्नेह…,
हटाएंकविता के तीनों खण्ड बहुत ही अर्थपूर्ण हैं . दिवस का अवसान और सामान का समेट लेना , जीने का सलीका सिखाने वाले तूफान और खामोशियों का बोलना सीखना ..वाह सुन्दर बिम्ब .
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली…, हार्दिक आभार मैम ! सादर सस्नेह वन्दे !
जवाब देंहटाएंवक़्त के साथ ख़ामोशी भी बोलना सीख जाती है, सच कहा आपने।
जवाब देंहटाएंआपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया सदैव लेखनी को मान सम्पन्न सार्थकता देती है बहुत बहुत आभार जितेंद्र जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर त्रिवेणी
जवाब देंहटाएंसार्थक एवं पूरक अंतिम पंक्ति
लाजवाब।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हार्दिक आभार सुधा जी ! सादर सस्नेह…,
हटाएंएक एक त्रिवेणी बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रतिक्रिया द्वारा लेखनी को मान प्रदान करने के लिए आपका सादर आभार 🙏
हटाएंप्रणाम दीदी जब भी व्यस्तता घेर लेती है ब्लॉग में बहुत कुछ पीछे रह जाता है अब जैसे आपके ब्लॉग पर कई दिनों बाद आना हुआ पर तो सुन्दर त्रिवेणी पढ़ने को मिली
जवाब देंहटाएंव्यस्तताएँ जीवन का अनिवार्य हिस्सा हैं अनुज !
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।शुभाशीष सहित हार्दिक धन्यवाद ।
प्राकृतिक का चित्रण व बातें करना , बहुत अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएं- बीजेन्द्र जैमिनी
पानीपत - हरियाणा
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार आदरणीय 🙏
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