तुम्हारे बिना भी
बेफ़िक्री में गुजर ही रही थी
जिन्दगी..,
अपने होने का अर्थ
तुम से ही तो सीखा है
तुम्हें पाकर कैसे व्यक्त करूँ
समझ में आया ही नहीं
खुद को अभिव्यक्त करना
मेरे बस में कभी था ही नहीं
जिस राह चलना छोड़ा
बस छोड़ दिया
इस से पहले कि मैं
सब कुछ भूल - भाल जाऊँ
भागती-दौड़ती भीड़ में
भीड़ का हिस्सा बन खो जाऊँ
बिना लाग लपेट के
बस चंद शब्दों में ..,
इतना ही कहना है कि,
तुम्हें किसी को सौंपने के बाद
यह शहर मेरे लिए
अजनबी अजनबी
और ..,
ख़ाली खा़ली हो गया है
***