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गुरुवार, 2 जून 2022

“क्षणिकाएँ”


बारिशों में गुमटी पर

पकती चाय है जिन्दगी

घूँट-घूँट पीने का

आनन्द ही कुछ और है ।


जिन्दगी भी कई बार

 अदरक इलायची वाली

चाय बन जाती है 

जिसमें मिठास छोड़

सब कुछ सन्तुलन में है । 


उलझे माँझे सी होती हैं 

कई बार बातें…,

सुलझने की जगह

टूट जाती हैं  या फिर

सुलझाने वाले को ही

 ज़ख़्मी कर बैठती हैं 


***

37 टिप्‍पणियां:

  1. जिन्दगी भी कई बार
    अदरक इलायची वाली
    चाय बन जाती है
    जिसमें मिठास छोड़
    सब कुछ सन्तुलन में है ।
    .....जीवन से जुड़ी सुंदर सटीक क्षणिकाएं।

    जवाब देंहटाएं
  2. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-06-2022) को चर्चा मंच      "दो जून की रोटी"   (चर्चा अंक- 4450)  (चर्चा अंक-4395)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर कल की चर्चा में मेरी पोस्ट को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीय शास्त्री सर 🙏

      हटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ जून २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पाँच लिंकों का आनन्द में क्षणिकाओं को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी ! सस्नेह सादर वन्दे !

      हटाएं
  5. जिन्दगी भी कई बार

    अदरक इलायची वाली

    चाय बन जाती है

    जिसमें मिठास छोड़

    सब कुछ सन्तुलन में है ।

    गज़ब गज़ब और बस गज़ब । मिठास के अलावा सब कुछ है । बहुत पसंद आई ।।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लिखना सार्थक हो गया आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से …, हृदयतल से असीम आभार आपका ! सादर सस्नेह वन्दे !!

      हटाएं
  6. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-06-2022) को चर्चा मंच      "दो जून की रोटी"   (चर्चा अंक- 4450)  (चर्चा अंक-4395)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर कल की चर्चा में मेरी पोस्ट को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीय शास्त्री सर 🙏

      हटाएं
  7. वाह वाह! संवेदना को छूती अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  8. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार ओंकार सिंह ‘विवेक’ जी ।

    जवाब देंहटाएं
  9. माननीय मैम,
    हमारे जीवन में 'चाय ' कि महत्ता को
    समझती नन्ही सी कविता ।

    सुन्दर ! अति सुन्दर !

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  10. उत्तर
    1. सृजन की सराहना हेतु हार्दिक आभार ज्योति जी !

      हटाएं
  11. उलझे माँझे सी होती हैं

    कई बार बातें…,

    सुलझने की जगह

    टूट जाती हैं या फिर

    सुलझाने वाले को ही

    ज़ख़्मी कर बैठती हैं
    बहुत ही सटीक....
    सुलझाने वाले अक्सर जख्मी जरूर होते है...
    लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन की सराहना हेतु हृदय से आभार सुधा जी !

      हटाएं
  12. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । सादर आभार ज्योति खरे सर !

      हटाएं
  13. उलझे माँझे सी होती हैं

    कई बार बातें…,

    सुलझने की जगह

    टूट जाती हैं या फिर

    सुलझाने वाले को ही

    ज़ख़्मी कर बैठती हैं
    बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति आदरणीय ।

    जवाब देंहटाएं
  14. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार दीपक जी ।

    जवाब देंहटाएं
  15. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार नीतीश जी ।

      हटाएं
  16. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ओंकार सर !

    जवाब देंहटाएं
  17. लाजवाब सृजन दिल को छूती सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  18. आपका सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार !

    जवाब देंहटाएं
  19. वाह ... चाय की प्याली और ज़िन्दगी के गहरे एहसास जैसे घुल गए एक ही प्याली में ...
    बेहतरीन रचना ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया ने लेखन को मान सम्पन्न सार्थकता प्रदान की ।आभार सहित सादर नमस्कार नासवा जी !

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  20. वाह !चाय के साथ जिंदगी की तुलना सुंदर श्र्लाघ्य अहसास, सुंदर सृजन।

    बहुत देर से आईं हूँ पोस्ट पर मीना जी, पर आना सार्थक हुआ।
    कितना विचित्र संयोग है कि आज दोपहर में चाय बनाते कुछ भाव उमड़े और बीच में ही मोबाइल उठाकर ये दो बंद लिखे।
    और अभी तक बस इतना ही लिखा पड़ा है ।
    संयोग देखिए आज अभी इस पोस्ट में कुछ एक से भाव देखने को मिले।
    मेरी पंक्तियाँ:-👇
    जीवन है इक चाय पियाली
    रख न पाई न चख पाई।

    जर्जर होती भाव चदरिया
    ओढ़ी नहीं न रख पाई।

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  21. वाह ! अद्भुत! जीवन की क्षणभंगुरता ख़ूब उभर कर आई है इन पंक्तियों में । मोह -माया में लिप्त मन और जल में कमल सदृश भाव गहनता से निखर कर आए हैं आपके सृजन में ।आप के स्नेहिल उपस्थिति और इन बंद के साथ मेरी क्षणिकाओं का मान बढ़ गया । सस्नेह सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  22. ज़िंदगी पर कहा फलसफ़ा... वाह! घूँट-घूँट पीने का
    आनन्द ही कुछ और है ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  23. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया ने लेखन को मान सम्पन्न सार्थकता प्रदान की आभार सहित सस्नेह वन्दे अनीता जी !

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  24. तीनों क्षणिकाएं बहुत अच्छी हैं मीना जी। तीसरी वाली तो एक ऐसी सच्चाई है जिसे मैंने ख़ुद भुगता है।

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना ने क्षणिकाओं को सार्थकता प्रदान की । आपने सच कहा अक्सर इस तरह के संत्रास हम अच्छा करने के फेर में झेलते हैं । बहुत बहुत आभार आपकी अनमोल प्रतिक्रिया हेतु ।

      हटाएं
  25. The information you have produced is so good and helpful, I will visit your website regularly.

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"