कोने मे तुम खड़े अकेले
क्यों राहें देखा करते हो
मेरे प्रिय निकेत ! शायद तुम
मुझको ही ढूँढा करते हो
घूमे निशि दिन यूंही अकारण
गंतव्य का नहीं निशान
अंतहीन राहों पर चलना
एक बटोही की पहचान
पाखी दल लेकर आते
भाव भरे तेरे संदेश
समझ कर अनजान बन फिर
उर करता है बहुत क्लेश
मेरे जैसे ही तुम भी हो
इतना खुद ही समझ लोगे
उड़ने को जो पंख मिले हैं
बंधन में क्योंकर जकड़ोगे
गगनचुंबी परवाज़ें भरने
पंछी करे लक्ष्य संधान
मानव भी तो पंछी जैसा
रखता है उद्देश्य महान
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