अक्सर मैं
अपने और तुम्हारे
दरमियान
अदृश्य सी
दीवार देखती हूँ
जो नज़र से नहीं
दिल से
दिखाई देती है
🍁
सोच सोच का
फ़र्क़ है
मिली तो मिली
ना मिली तो ना सही
कारवाँ के मुसाफ़िर भी तो
गंतव्य की ख़ातिर
यूँ ही …
एक दूजे के साथ चलते हैं ।
🍁
अनामिका पर
तिल के जोड़े को देख
किसी ने कहा था -
यह अमीरी की नहीं
ऋण की निशानी है
आजकल…
वे दिखना बंद हो गए हैं
भान होता है…
या तो सारे ऋण चुक गए
या फिर काम
और..
समय के साथ
अपने आप घिस गए हैं
🍁
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार अनुज !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5-5-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4421 में दिया जाएगा | चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
सृजन को मंच की चर्चा में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार दिलबाग सिंह जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर क्षणिकाएं, मीना दी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ज्योति जी !
हटाएंसुंदर सृजन ! शायद हर दीवार एक आभास है, मंज़िल एक है सभी की और ऋण अवश्य चुकता हो जाते होंगे जब हर अपेक्षा छूट जाती है
जवाब देंहटाएंआजकल…
वे दिखना बंद हो गए हैं
भान होता है…
या तो सारे ऋण चुक गए
या फिर काम
और..
समय के साथ
अपने आप घिस गए हैं
अच्छा हो कि "ऋण" ही चुकता हुआ हो।अंतर्मन में उलझे भावों की बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर नमन मीना जी
हृदयतल से हार्दिक आभार कामिनी जी !सादर वन्दे !
हटाएंबेहतरीन क्षनिकायें
जवाब देंहटाएंहृदयतल से हार्दिक आभार अनुपमा जी!
हटाएंबहुत सुंदर क्षणिकायें मीना जी ...वाह
जवाब देंहटाएंहृदयतल से हार्दिक आभार अलकनन्दा जी !
हटाएंकारवाँ के मुसाफ़िर भी तो
जवाब देंहटाएंगंतव्य की ख़ातिर
यूँ ही …
एक दूजे के साथ चलते हैं ।
वाह बेहतरीन गहराई से निकली मन को गहरे तक छूती प्रस्तुति मीना जी।
बहुत समय के बाद आपकी प्रतिक्रिया अपने ब्लॉग पर पा कर अत्यंत हर्ष हुआ अनुज ! हृदयतल से हार्दिक आभार ।
हटाएंबहुत सुंदर क्षणिकाएँ।
जवाब देंहटाएंअनामिका पर
तिल के जोड़े को देख
किसी ने कहा था -
यह अमीरी की नहीं
ऋण की निशानी है
आजकल…
वे दिखना बंद हो गए हैं
भान होता है…
या तो सारे ऋण चुक गए
या फिर काम
और..
समय के साथ
अपने आप घिस गए हैं... वाह!
हृदयतल से हार्दिक आभार अनीता जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंहृदयतल से हार्दिक आभार ओंकार सर !
हटाएंगहन जीवन मंत्र से सजी सुंदर क्षणिकाएं।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से हार्दिक आभार जिज्ञासा जी !
हटाएंबहुत सुंदर क्षणिकाएं।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से हार्दिक आभार अनुराधा जी !
जवाब देंहटाएंहर क्षणिका कमाल है ...
जवाब देंहटाएंअपनी बात बाखूबी रखती है ... चुटीली है ...
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नासवा जी ।
जवाब देंहटाएंदिल में दबी हुई उन तमन्नाओं को शायद ऐसे ही समझाया जाता है ...जब वक्त ही खामोशी को ओढ़ लेता है।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से हार्दिक आभार अमृता जी 🙏
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