उगते सूरज की आभा में
मन समझे ऐसी भाषा में
मैं कोई एक गीत और..,
तुम सारा संसार लिखो
पर्वत के उर से उपजी
वर्तुल वीथियों में उलझी
जल की नन्ही सी बूँद
पहुँची सागर के पास
मैं उसका इतिहास और..,
तुम सागर विस्तार लिखो
झिलमिल करते
नभ आंगन का
कोई धूसर खाली कोना
क्यों रिक्त रहा उडुगण के बिन
मैं उसका अभिप्राय और..,
तुम सारा ब्रह्माण्ड लिखो
अगम राह में एक राही
पाने को मंजिल मनचाही
करने बाधाएँ पार
करता खुद को प्रतिबद्ध
मैं उसका संकल्प और..,
तुम जीत का हर्ष अपार लिखो
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