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शुक्रवार, 11 मार्च 2022

“त्रिवेणी”



जलती-बुझती रोशनियों को साफ़ आसमान से

निहार रहा है  तारों के साथ दूज का चाँद 


छोटी-छोटी ख़्वाहिशें भी आसमां सा साथ माँगती हैं 


🍁


विचारों के निर्वात की स्थिति में शून्य में डूबा मन

चंचल बच्चे सा अनुशासनहीनता की चादर ओढ़


भरी दोपहरी में नंगे पाँवों तपती रेत में घूमता है ।


🍁


एक जैसी प्रकृति होती हैं

खरपतवार और स्मृतियों की


जितना हटाओ उतनी ही बढ़ती जाती हैं ।


🍁


निर्बल और आम आदमी की परेशानी जताती है 

कुछ लोगों की भयावह लिप्सा की भूख  


आदिकाल से होते युद्ध इस बात की गवाही देते हैं ।


🍁

18 टिप्‍पणियां:

  1. इस त्रिवेणी में डुबकी लगाई जाए या किनारे बैठ कर ही पैठा जाए। मननीय सृजन।

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना पा कर लेखनी का मान बढ़ा ..हार्दिक आभार अमृता जी !

      हटाएं
  2. बेहद सुंदर त्रिवेणी सभी एक से बढ़कर एक हैं दी।

    ---//---
    एक जैसी प्रकृति होती हैं
    खरपतवार और स्मृतियों की

    जितना हटाओ उतनी ही बढ़ती जाती हैं।
    हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ।

    सादर
    प्रणाम दी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ।
      श्वेता जी स्नेहिल आभार ।सस्नेह …।

      हटाएं
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२ -०३ -२०२२ ) को
    'भरी दोपहरी में नंगे पाँवों तपती रेत...'(चर्चा अंक-४३६७)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर चर्चा में सृजन को मान देने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ! सस्नेह…।

      हटाएं
  4. सार्थक और सटीक बिंब, रूपक, उपमाएँ।
    हर छंद बेहतरीन है मीनाजी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ।
      मीना जी स्नेहिल आभार ।सस्नेह …।

      हटाएं
  5. सार्थक और सुन्दर रचना हेतु साधुवाद !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका ब्लॉग पर स्वागत है 🙏
      सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  6. बहुत सुंदर त्रिवेणियाँ।
    सुंदर प्रतीक , सारगर्भित भाव ।
    हर त्रिवेणी कबीर के दोहे सी भावों का दोहन।
    अभिनव सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ।
      स्नेहिल आभार कुसुम जी ।सस्नेह …।

      हटाएं
  7. एक जैसी प्रकृति होती हैं

    खरपतवार और स्मृतियों की



    जितना हटाओ उतनी ही बढ़ती जाती हैं ।

    हृदय स्पर्शी पंक्तियां, बहुत ही सुन्दर सृजन मीना जी,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सारगर्भित सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी 🙏🌹

      हटाएं
  8. उत्तर
    1. सारगर्भित सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जीज्ञासा जी 🙏🌹

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"