Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

"सागर और लहरें"


सागर के मन में बैचेनी भरी है ।

अजब सी हलचल कूलों पर मची है ।।

 

बढ़ रही हैं देखो प्रबल वेग से ,

लहरें भी आतुर हैं कितनी देर से ।

तोड़ कारा मुक्त होना चाहती हैं ,

अपने ढंग से ये भी जीना चाहती हैं ।


धैर्य की सीमाएं शायद खो रही हैं ,

पाने को तटबंध देखो बावरी सी हो रही हैं ।


व्यग्र होने का कुछ सबब रहा होगा ,

लहरों का अस्तित्व खो रहा होगा ।

उनका मोह जैसे भंग हो रहा है ,

शायद अपना सा कहीं  कुछ खो रहा है ।


मन सरोवर में किसी ने फेंक दी कोई कंकरी है ।

शान्त से माहौल में गूंज शोर की हो रही है ।।


🍁


32 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय मीना दी।
    व्याकुल मनः स्थति लहरों के बहाने तोड़ती तट सराहनीय अभिव्यक्ति दी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका उत्साहवर्धन मेरा सदैव मनोबल संवर्धन करता है । सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनीता
      जी । सस्नेह...,

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4337 में दिया जाएगा| आप इस चर्चा तक जरूर पहुँचेंगे, ऐसी आशा है|
    धन्यवाद
    दिलबाग

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने के आमन्त्रित करने के लिए असीम आभार दिलबाग जी । चर्चा में मैं अवश्य शामिल होऊंगी । धन्यवाद 🙏

      हटाएं
  3. मन की बेचैनियाँ सागर और लहरों के माध्यम से अभिव्यक्त हुई हैं ।।बेहतरीन रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका उत्साहवर्धन मेरा सदैव मनोबल संवर्धन करता है । सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार मैम !

      हटाएं
  4. व्यग्र होने का कुछ सबब रहा होगा ,

    लहरों का अस्तित्व खो रहा होगा ।

    उनका मोह जैसे भंग हो रहा है ,

    शायद अपना सा कहीं कुछ खो रहा है ।

    मन की उलझन का स्टिक वर्णन मिलता है इन पंक्तियों में, सुंदर सृजन!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार ।

      हटाएं

  5. व्यग्र होने का कुछ सबब रहा होगा ,

    लहरों का अस्तित्व खो रहा होगा ।

    उनका मोह जैसे भंग हो रहा है ,

    शायद अपना सा कहीं कुछ खो रहा है ।.. मन की व्यग्रता का सुंदर सराहनीय चित्रण ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार जिज्ञासा जी ।

      हटाएं
  6. लहरों की सी विकलता लिए मन परिभाषित हो रहा है मीना जी।
    तट के बंधनों को जब जब तोड़ती है लहरें एक घोर सुनामी आती है, लहरें कितनी भी चंचल हो पर बंधन में ही मोहक लगती है कितना भी शीश पट्टों सागर उन्हें मुक्त नहीं करना चाहता। ये बस ऐसे ही मन के भाव हैं,रचना अप्रतिम अभिनव भावों को आलोडित करती सुंदर अभिव्यक्ति।
    सस्नेह।
    बहुत ही सुंदर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रकृति पग पग पर सीख देती है कभी-कभी मैं प्रकृति को शिक्षक के रूप में अनुभव करती हूँ । आपकी सारगर्भित सराहनात्मक समीक्षा से सृजन को सार्थकता मिली । आपके स्नेहिल उत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभारी हूँ कुसुम जी ।

    जवाब देंहटाएं
  8. मन के भावों को सागर का रूप देकर बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है आपने!
    हृदय स्पर्शी सृजन!!

    जवाब देंहटाएं
  9. रचना के भावों को समर्थन देती प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ मनीषा जी । आपकी स्नेहिल उपस्थिति के लिए हृदय से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  10. सागर और सागर के चरित्र के माध्यम से बहुत कहने का प्रयास है यह कविता ... भावों की भरपूर अदायगी ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी ऊर्जात्मक सराहना से सृजन सार्थक हुआ ।
      हार्दिक आभार नासवा जी ।

      हटाएं
  11. सूक्ष्म अभिव्यक्ति की दुर्निवार ज्वार डगमगा रही है। सुन्दर सृजन।
    आशा है कि आप अब और अच्छी होंगी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मैं अच्छी हूँ और आपसे अपनापन पा कर और अच्छी । आपके स्नेहिल अपनत्व के लिए दिल से आभार
      अमृता जी 🙏

      हटाएं
    2. सृजन से कहीं बहुत ऊपर हृदय का स्पंदन होता है जो बस महसूस होता है एक-दूसरे के लिए। आभारी होने की कोई आवश्यकता नहीं है। आप अच्छी रहें।

      हटाएं
  12. ये कंकरी उदासी, बैचेनी और स्वतंत्रता की तड़फ की कंकरी होगी जिससे इतनी हलचल मच गई है।
    भाव रहस्यवादी है।
    बहुत कुछ कहती रचना।

    नई पोस्ट- CYCLAMEN COUM : ख़ूबसूरती की बला

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता
      मिली । हार्दिक आभार रोहितास जी ।

      हटाएं
  13. मन सरोवर में किसी ने फेंक दी कोई कंकरी है ।

    शान्त से माहौल में गूंज शोर की हो रही है ।।

    सागर की लहरों को देख मन कुछ ऐसे ही बेचैन हो जाता है, हृदय के भावों की बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति मीना जी, 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका उत्साहवर्धन मेरा सदैव मनोबल संवर्धन करता है । सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कामिनी
      जी । सस्नेह...,

      हटाएं
  14. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार 🙏

      हटाएं
  15. मन की व्यग्रता का सुंदर सराहनीय चित्रण ।

    जवाब देंहटाएं
  16. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार संजय जी !

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"