सागर के मन में बैचेनी भरी है ।
अजब सी हलचल कूलों पर मची है ।।
बढ़ रही हैं देखो प्रबल वेग से ,
लहरें भी आतुर हैं कितनी देर से ।
तोड़ कारा मुक्त होना चाहती हैं ,
अपने ढंग से ये भी जीना चाहती हैं ।
धैर्य की सीमाएं शायद खो रही हैं ,
पाने को तटबंध देखो बावरी सी हो रही हैं ।
व्यग्र होने का कुछ सबब रहा होगा ,
लहरों का अस्तित्व खो रहा होगा ।
उनका मोह जैसे भंग हो रहा है ,
शायद अपना सा कहीं कुछ खो रहा है ।
मन सरोवर में किसी ने फेंक दी कोई कंकरी है ।
शान्त से माहौल में गूंज शोर की हो रही है ।।
🍁
बहुत बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय मीना दी।
जवाब देंहटाएंव्याकुल मनः स्थति लहरों के बहाने तोड़ती तट सराहनीय अभिव्यक्ति दी।
सादर
आपका उत्साहवर्धन मेरा सदैव मनोबल संवर्धन करता है । सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनीता
हटाएंजी । सस्नेह...,
।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4337 में दिया जाएगा| आप इस चर्चा तक जरूर पहुँचेंगे, ऐसी आशा है|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने के आमन्त्रित करने के लिए असीम आभार दिलबाग जी । चर्चा में मैं अवश्य शामिल होऊंगी । धन्यवाद 🙏
हटाएंसुंदर सृजन...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार विकास जी ।
हटाएंमन की बेचैनियाँ सागर और लहरों के माध्यम से अभिव्यक्त हुई हैं ।।बेहतरीन रचना ।
जवाब देंहटाएंआपका उत्साहवर्धन मेरा सदैव मनोबल संवर्धन करता है । सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार मैम !
हटाएंव्यग्र होने का कुछ सबब रहा होगा ,
जवाब देंहटाएंलहरों का अस्तित्व खो रहा होगा ।
उनका मोह जैसे भंग हो रहा है ,
शायद अपना सा कहीं कुछ खो रहा है ।
मन की उलझन का स्टिक वर्णन मिलता है इन पंक्तियों में, सुंदर सृजन!
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार ।
हटाएंकृपया "सटीक" पढ़ें
जवाब देंहटाएंजी 🙏
हटाएं
जवाब देंहटाएंव्यग्र होने का कुछ सबब रहा होगा ,
लहरों का अस्तित्व खो रहा होगा ।
उनका मोह जैसे भंग हो रहा है ,
शायद अपना सा कहीं कुछ खो रहा है ।.. मन की व्यग्रता का सुंदर सराहनीय चित्रण ।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार जिज्ञासा जी ।
हटाएंलहरों की सी विकलता लिए मन परिभाषित हो रहा है मीना जी।
जवाब देंहटाएंतट के बंधनों को जब जब तोड़ती है लहरें एक घोर सुनामी आती है, लहरें कितनी भी चंचल हो पर बंधन में ही मोहक लगती है कितना भी शीश पट्टों सागर उन्हें मुक्त नहीं करना चाहता। ये बस ऐसे ही मन के भाव हैं,रचना अप्रतिम अभिनव भावों को आलोडित करती सुंदर अभिव्यक्ति।
सस्नेह।
बहुत ही सुंदर रचना ।
प्रकृति पग पग पर सीख देती है कभी-कभी मैं प्रकृति को शिक्षक के रूप में अनुभव करती हूँ । आपकी सारगर्भित सराहनात्मक समीक्षा से सृजन को सार्थकता मिली । आपके स्नेहिल उत्साहवर्धन के लिए हृदय से आभारी हूँ कुसुम जी ।
जवाब देंहटाएंमन के भावों को सागर का रूप देकर बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है आपने!
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी सृजन!!
रचना के भावों को समर्थन देती प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ मनीषा जी । आपकी स्नेहिल उपस्थिति के लिए हृदय से आभार ।
जवाब देंहटाएंसागर और सागर के चरित्र के माध्यम से बहुत कहने का प्रयास है यह कविता ... भावों की भरपूर अदायगी ...
जवाब देंहटाएंआपकी ऊर्जात्मक सराहना से सृजन सार्थक हुआ ।
हटाएंहार्दिक आभार नासवा जी ।
सूक्ष्म अभिव्यक्ति की दुर्निवार ज्वार डगमगा रही है। सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआशा है कि आप अब और अच्छी होंगी।
मैं अच्छी हूँ और आपसे अपनापन पा कर और अच्छी । आपके स्नेहिल अपनत्व के लिए दिल से आभार
हटाएंअमृता जी 🙏
सृजन से कहीं बहुत ऊपर हृदय का स्पंदन होता है जो बस महसूस होता है एक-दूसरे के लिए। आभारी होने की कोई आवश्यकता नहीं है। आप अच्छी रहें।
हटाएं🌹🙏😊
हटाएंये कंकरी उदासी, बैचेनी और स्वतंत्रता की तड़फ की कंकरी होगी जिससे इतनी हलचल मच गई है।
जवाब देंहटाएंभाव रहस्यवादी है।
बहुत कुछ कहती रचना।
नई पोस्ट- CYCLAMEN COUM : ख़ूबसूरती की बला
आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता
हटाएंमिली । हार्दिक आभार रोहितास जी ।
मन सरोवर में किसी ने फेंक दी कोई कंकरी है ।
जवाब देंहटाएंशान्त से माहौल में गूंज शोर की हो रही है ।।
सागर की लहरों को देख मन कुछ ऐसे ही बेचैन हो जाता है, हृदय के भावों की बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति मीना जी, 🙏
आपका उत्साहवर्धन मेरा सदैव मनोबल संवर्धन करता है । सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कामिनी
हटाएंजी । सस्नेह...,
सु्न्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार 🙏
हटाएंमन की व्यग्रता का सुंदर सराहनीय चित्रण ।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार संजय जी !
जवाब देंहटाएं