आम की मंजरी पर बैठी
कोयल की कुहूक
और गुलाबी ठंड में
किताबों के पन्नों के साथ
चिंतन करता
शुभ्रवस्त्राविता का
वंदन करता
ऋतु राज बसंत !
वह हँस रहा है -
गेंदे के फूलों में
खेत खलिहानों में
फूली सरसों और गोधूम की
बालियों में
टेसू में डूबे फाग- राग में
ओह ! बसंत !
ऋतु राज बंसत !
उसने…
फिर से दस्तक दी है
भारी भरकम यातायात के बीच
अग्निशिखी परिधानों में लिपटे
गुलमोहरों की
चिलमन की ओट से
ऋतुराज मुझसे कह रहा है कि -
कवि पद्माकर के
“बनन में, बागन में, बगरयो बसंत है”
कि जगह वह भी अब -
सड़कन के किनारों पे बगरयो बसंत है !
***
अति सुन्दर वंदन ऋतुराज का... सुन्दर संवाद से।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना के लिए स्नेहिल आभार अमृता
हटाएंजी !
अनुपम चित्रांकन है ऋतुपति का।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना के लिए स्नेहिल आभार लोकेष्णा (लोपामुद्रा ) जी !
हटाएंहर जगह छाप है वसंत की।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कविता।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार रोहितास जी।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (14-02-2022 ) को 'ओढ़ लबादा हंस का, घूम रहे हैं बाज' (चर्चा अंक 4341) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
चर्चा अंक -४३४१ की चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार रवीन्द्र सिंह जी 🙏
हटाएंवसंतोत्सव का बहुत सुन्दर वर्णन मीना जी.
जवाब देंहटाएंवैसे कवि पद्माकर आज होते तो उनकी वाणी चुनावी शोर में घुट जाती.
उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए सादर आभार सर 🙏
हटाएंवाह!वाह!बहुत ही सुंदर सृजन दी।
जवाब देंहटाएंशीतल बहुत ही शीतल अभिव्यक्ति।
सादर
उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए स्नेहिल आभार अनीता जी !
हटाएंसुन्दर वसंत वर्णन!
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार ज्योति जी ।
जवाब देंहटाएंऋतुराज के स्वागत में खुशबू बिखेरते पुष्षों की तरह अत्यंत मनमोहक सृजन दी।
जवाब देंहटाएंसादर
स्नेह।
उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए स्नेहिल आभार श्वेता जी! सस्नेह ।
हटाएंऋतुराज बसंत पर बसंत सी मनमोहक लाजवाब सृजन
जवाब देंहटाएंवाह!!!
उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए स्नेहिल आभार सुधा
हटाएंजी !
सुंदर चित्रमय वर्णन। हमारे आसपास तो बिल्डिंगों के जंगल हैं। कब वसंत आता है और कब जाता है पता नहीं।
जवाब देंहटाएंसही कहा मीना जी ! बिल्डिंगों के जंगल में अब कुदरत सिमटने लगी है ! उत्साहवर्धन करती आपकी सराहना के लिए स्नेहिल आभार ।
हटाएंबसंत का बहूत ही सुंदर वर्णन।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी ।
हटाएंआम की मंजरी पर बैठी
जवाब देंहटाएंकोयल की कुहूक
और गुलाबी ठंड में
किताबों के पन्नों के साथ
चिंतन करता
शुभ्रवस्त्राविता का
वंदन करता
ऋतु राज बसंत !.. छायाचित्र जैसा सुंदर बासंती वर्णन । बहुत शुभकामनाएँ मीना जी ।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी ।
हटाएंबसंत के आगमन का सुन्दर दृश्य बनाया है शब्दों से ....
जवाब देंहटाएंफूलों का महकना, रँगों का खिलना येही तो सूचक हैं आगमन के ... बहुत सुन्दर सृजन ...
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नासवा जी।
हटाएंबसंत का दृश्य समा गया आँखों में । सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मैम 🙏🌹🙏
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