मुझे अच्छे लगते हैं
पहाड़….,
इनके अनन्य सखा
चीड़ -चिनार और देवदार
अठखेलियां करते हुए
देते हैं मौन आमन्त्रण
अपने पास आने का
भोर के धुंधलके में
पहाड़ों से झांकती
ऊषा का सौन्दर्य
शीशी में बंद इत्र की महक सा
मुझे बाँधता है अपने
सम्मोहक आकर्षण में
सुदूर घाटी में जब बजाता है
कोई चरवाहा बांसुरी
तो झूमने लगती है
पूरी वादी तब ये...
अचल और स्थितप्रज्ञ
साधक से खड़े रहते हैं
अपनी ही धुन में मग्न
निर्विकार और निर्लिप्त
उतुंग शिखरों पर
पहने धवल किरीट
मुझे खींचते हैं
अपनी ओर…,
दबाए सीने में
असीमित हलचल
सदियों से सभ्यताओं के
संरक्षक और संवर्द्धक
सरहदों के रक्षक हैं
पहाड़ … ।।
***
[चित्र:- गूगल से साभार]
कायनात का हर रूप मनोहारी तो होता है, पर किसी पहाड़ के नीचे या सागर के सामने खड़े हो उसे निहारने पर अपनी लघुता का एहसास भी हो जाता है !
जवाब देंहटाएंसत्य कथन सर ! प्रकृति के विराट स्वरूप के आगे मानव सदा ही लघु रहेगा । आपकी मान सम्पन्न उपस्थिति के लिए आभारी हूँ🙏
जवाब देंहटाएंप्रकृति का बहुत ही सुंदर मन भावन चित्रण।
जवाब देंहटाएंशब्दों में बिखरी भावों की छटा देखते ही बनती है।
बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन आदरणीया मीना दी जी।
सादर स्नेह
बहुत बहुत आभार प्रिय अनीता जी ,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई। स्नेह....,
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-1-22) को " अजन्मा एक गीत"(चर्चा अंक 4321)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
चर्चा मंच की चर्चा में रचना को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी ।
हटाएंदबाए सीने में
जवाब देंहटाएंअसीमित हलचल
सदियों से सभ्यताओं के
संरक्षक और संवर्द्धक
सरहदों के रक्षक हैं
पहाड़ … ।।.. बहुत सुंदर भावपूर्ण, तथ्यपूर्ण अभिव्यक्ति 👌👌
उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हृदय से असीम आभार जिज्ञासा जी 🌹
हटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हृदय से हार्दिक आभार
हटाएंनीतीश जी ।
पहाड़ होते ही ऐसे हैं, सबको अपनी और आकर्षित करते हैं
जवाब देंहटाएंपहाड़ का नाम सुनकर ही मन पहाड़ों में उड़ने लगता है
बहुत सुन्दर
पहाड़ों के प्रति अनुराग भरी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ॥ हार्दिक आभार कविता जी ।
हटाएंसदियों से सभ्यताओं के
जवाब देंहटाएंसंरक्षक और संवर्द्धक
सरहदों के रक्षक हैं
पहाड़, वाक़ई कितनी सत्ताएँ आयीं और मिट गयीं, हिमालय आज भी सिर उन्नत किए खड़ा है, बहुत ही सुंदर रचना!
आपकी सराहना सम्पन्न सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ अनीता जी ! हार्दिक आभार ॥
हटाएंअभिनव सृजन मीना जी! कोमल भावों से सुसज्जित प्रकृति दृश्यों से सजा सुंदर काव्य चित्र।
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी रचना मुझे अपनी एक बहुत पुरानी रचना याद आ गई ,जो छंद मुक्त है पर मूझे बहुत प्यारी है।
सस्नेह सुंदर सृजन।
रचना का प्राकृतिक सौंदर्य आपके दिल तक पहुँचा..लिखना सार्थक हुआ कुसुम जी । आपकी प्रिय रचना कभी साझा करें रचना का रसास्वादन कर के अपार हर्ष की अनुभूति होगी।सस्नेह आभार ।
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हृदय से हार्दिक आभार अनुराधा जी !
हटाएंबहुत सुंदर, प्रकृति की सुंदरततम प्रवाह सी बहती काव्य धारा
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हृदय से हार्दिक आभार
हटाएंभारती जी !
सुदूर घाटी में जब बजाता है
जवाब देंहटाएंकोई चरवाहा बांसुरी
तो झूमने लगती है
पूरी वादी तब ये...
अचल और स्थितप्रज्ञ
साधक से खड़े रहते हैं
अपनी ही धुन में मग्न
निर्विकार और निर्लिप्त
वाह!कितनी खूबसूरती से वर्णन किया है आपने मैम पहाड़ की सुंदरता का!
एक एक शब्द खूबसूरती से चुन चुन कर रचना को बुना है!मनमोहक सृजन..
आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया ने मन मोह लिया मनीषा जी । स्नेहिल आभार । आपके साथ ब्लॉग जगत के सभी प्रबुद्धजनों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई🙏 💐🙏
जवाब देंहटाएंआपकी दृष्टि अनुभव से नया प्राण भर रहा है पहाड़ में। जीवंत-सा, चलायमान-सा....
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया मेरी लेखनी में नव उत्साह था संचार करती है ...,असीम आभार अमृता जी !
जवाब देंहटाएंअचेतन्य अवस्था वाले पहाड़ के प्रति चेतन्य अनुभूति के मृदुल भाव जगाती अत्यन्त सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हृदय से आपका हार्दिक आभार 🙏🙏
हटाएंयह रचना मन को बाध्य करती है कि पहाड़ की यात्रा करें। पहाड़ तो अपनी चार धाम यात्रा में देखे थे उत्तराखंड की, देखकर ही सिर झुक जाता था नमन में। यही लगता था कि वहीं बस जाएँ। महाराष्ट्र की सह्याद्रि पर्वतमाला भी बहुत आकर्षित करती है।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया ने पहाड़ों की ख़ूबसूरती के साथ साथ मेरे सृजन की शोभा को द्विगुणित कर लेखनी का मान बढ़ाया । हार्दिक आभार मीना जी ।
हटाएंमौन, ऋषि जैसे ... सदियों को यूँ ही निहारते पहाड़ ...
जवाब देंहटाएंजाने कितनी सभ्यताओं को जनम लेते हुए देखा अहि इन्होने ... बाखूबी शब्दों में उतारा है इन्हें ...
सृजन पर आपकी उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हृदय से हार्दिक आभार नासवा जी ।
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