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शनिवार, 15 जनवरी 2022

"सांझ"


बच्चन जी की कविता "साथी सांझ लगी होने" पढ़ते हुए स्वत: ही मन में उठे भावों को रुप देने का प्रयास एक कविता के रुप में ...


गोताखोर बनी शफरियां

खेल रहीं दरिया जल में

मन्थर लहरें डोल रही हैं ढलते सूरज के संग में

अब रात लगी होने


नेह के तिनके जोड़ गूंथ कर

नीड़ बसाया खग वृन्दों ने

एक - एक कर उड़े सभी वो विचरण करने नभ में

रिक्त लगे नीड़ होने


पंचभूत की बनी यह काया

जीवन आनी जानी माया

एक सूरज डूबे दरिया में और एक मेरे मन में

पाखी लौट चलें सोने !!


***

[ चित्र :-गूगल से साभार ]










34 टिप्‍पणियां:

  1. वीत राग का एहसास कराती रचना । बेहतरीन अभिव्यक्ति ।

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    1. आपके उत्साहवर्धन से सृजन सार्थक हुआ । हृदय से असीम आभार मैम 🙏🌹

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  2. पंचभूत की बनी यह काया

    जीवन आनी जानी माया

    एक सूरज डूबे दरिया में और एक मेरे मन में

    पाखी लौट चलें सोने !!बेहतरीन रचना सखी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हृदय से असीम आभार सखी 🌹

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  3. हर उक्ति में यथार्थ-तत्त्व की परिलक्षित गरिमा । अति सुन्दर सृजन ।

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    1. बहुत समय के बाद आपकी स्नेहिल उपस्थिति से अतीव हर्ष की अनुभूति हुई । आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया सदैव मेरे सृजन को सार्थक करती है । हृदय से असीम आभार अमृता जी !

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  4. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हृदय से असीम आभार ज्योति जी !

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  5. जीवन संदर्भ को आलोकित करता शाश्वत सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हृदय से असीम आभार जिज्ञासा जी ।

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 16 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    उत्तर
    1. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को साझा करने हेतु सादर आभार आ. रवीन्द्र सिंह जी 🙏

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  7. नेह के तिनके जोड़ गूंथ कर

    नीड़ बसाया खग वृन्दों ने

    एक - एक कर उड़े सभी वो विचरण करने नभ में

    रिक्त लगे नीड़ होने
    जीवन का कटु सत्य है ये...जीवन की सांझ और नीड़ भी खाली खाली...
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण...
    लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हृदय से असीम आभार सुधा जी ।

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  8. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (16-1-22) को पुस्तकों का अवसाद " (चर्चा अंक-4311)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  9. चर्चा मंच की चर्चा में सृजन का चयन करने हेतु हार्दिक आभार कामिनी जी ॥

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  10. दर्शन और अध्यात्म दोनों को सुंदरता से छोटी सी रचना में समेट लिया है मीना जी आपने ,कबीर की तरह।
    अद्भुत सृजन।

    तीनों अंतरे गहन सांकेतिक भावों से परिपूर्ण।🌷

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    1. आपके स्नेहिल उत्साहवर्धन से अभिभूत हूँ । हृदय से असीम आभार कुसुम जी । 🌹🙏

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  11. पाखी लौट चलें सोने !!
    राग से वैराग की ओर ले जाती सुंदर रचना! --ब्रजेंद्रनाथ

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना पाकर सृजन सार्थक हुआ । हृदय से असीम आभार सर 🙏

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  12. निशब्द।
    सराहना से परे।
    अंतस की परतों को छूता सृजन।
    सादर

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    उत्तर
    1. आपके स्नेहिल उत्साहवर्धन से अभिभूत हूँ । हृदय से असीम आभार अनीता जी ।

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  13. पंचभूत की बनी यह काया

    जीवन आनी जानी माया

    एक सूरज डूबे दरिया में और एक मेरे मन में

    पाखी लौट चलें सोने !!
    सुंदर रचना आदरणीय ।

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    1. उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हृदय से असीम आभार आ. दीपक जी ।

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  14. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हृदय से असीम आभार
      भारती जी ।

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  15. एक सूरज डूबे दरिया में और एक मेरे मन में

    पाखी लौट चलें सोने !!

    waah

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    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए आपका हृदय से असीम आभार 🙏

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  16. उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हार्दिक आभार मनीषा जी🌹

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  17. जैसे भाव बच्चन जी की उस कविता के हैं, वैसे ही आपने भी अभिव्यक्त किए हैं मीना जी। दिल में अचानक उभर आने वाली भावनाएं यूं ही अभिव्यक्त कर दी जानी चाहिए। बहुत अच्छा लगा पढ़कर।

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    1. आपकी सराहना पाकर सृजन सार्थक हुआ । हृदय से असीम आभार जितेन्द्र जी ।

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  18. वीत रागी की तरह ... आध्याम का भाव समेटे कई बार ऐसे ही जीवन से जुड़ी रचनाएँ जनम ले लेती हैं ... बहुत भावपूर्ण रचना ...

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना पाकर सृजन सार्थक हुआ । हृदय से असीम आभार नासवा जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"