कल कल बहते भावों को ,
शब्दों की माला में बांधूं ।
झील सतह पर हंस का जोड़ा ,
सैकत तीर शिकारा बांधूं ।।
ऊषा रश्मियाँ लेकर आती ,
पूर्व दिशा से सुन्दर सूरज ।
स्वागत में खग कलरव करते ,
ठगी ठगी सी लागे कुदरत।।
मंजुल मुकुर प्रत्युष मनोहर ,
कैसे मैं शब्दों में बांधूं ।।
झील सतह पर हंस का जोड़ा ,
सैकत तीर शिकारा बांधूं ।।
आम्रबौर की मादक सुरभि ,
मदिर मदिर चलती पुरवैया ।
रुनझुन बजे गले की घंटी ,
बछड़े संग खेलती गैया ।।
वसुधा के असीम सुख को ,
कौन छन्द उपमा में बांधूं ।
झील सतह पर हंस का जोड़ा ,
सैकत तीर शिकारा बांधूं ।।
अविरल बहती धारा के संग ,
मन की गागर छलकी जाए ।
कौन साज सजे जीवन सुर ,
व्याकुल मनवा समझ न पाए ।।
पंचभूत की नश्वरता को ,
विस्मृति के धागों से बांधूं ।।
झील सतह पर हंस का जोड़ा ,
सैकत तीर शिकारा बांधूं ।।
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अविरल बहती धारा के संग ,
जवाब देंहटाएंमन की गागर छलकी जाए ।
कौन साज सजे जीवन सुर ,
व्याकुल मनवा समझ न पाए ।।
पंचभूत की नश्वरता को ,
विस्मृति के धागों से बांधूं ।।
झील सतह पर हंस का जोड़ा ,
सैकत तीर शिकारा बांधूं ।।
अद्वितीय भाव, आप जैसा शब्दों की माला तो विरले ही पिरोते हैं...मन के भावों की लाजबाव अभिव्यक्ति,सादर नमन मीना जी
सस्नेह आभार कामिनी जीआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया और स्नेह लेखनी मे ऊर्जा का संचार करते हैं। सादर अभिवादन!
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार ज्योति जी !
जवाब देंहटाएंवाह!लाज़वाब सृजन आदरणीय मीना दी जी।
जवाब देंहटाएंआम्रबौर की मादक सुरभि ,
मदिर मदिर चलती पुरवैया ।
रुनझुन बजे गले की घंटी ,
बछड़े संग खेलती गैया ।।
वसुधा के असीम सुख को ,
कौन छन्द उपमा में बांधूं... गज़ब का बिम्ब उकेरा है आपने 👌
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की । लेखनी को ऊर्जात्मक मान देने के लिए सस्नेह आभार अनीता जी !
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (07-12-2021 ) को 'आया ओमीक्रोन का, चर्चा में अब नाम' (चर्चा अंक 4271) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
चर्चा मंच की चर्चा में रचना को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आ.रवीन्द्र जी 🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय मैम!
जवाब देंहटाएंऔर शब्दों का चयन तो बहुत ही खूबसूरत है..
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार मनीषा जी।सस्नेह ....,
हटाएंवाह, कोमल भावों को सुंदर शब्दों में पिरोया है
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ।हृदयतल से हार्दिक आभार अनीता जी ।
हटाएंवाह मीना जी, क्या खूब लिखा है- आम्रबौर की मादक सुरभि ,
जवाब देंहटाएंमदिर मदिर चलती पुरवैया ।
रुनझुन बजे गले की घंटी ,
बछड़े संग खेलती गैया ।।
वसुधा के असीम सुख को ,
कौन छन्द उपमा में बांधूं ।
झील सतह पर हंस का जोड़ा ,
सैकत तीर शिकारा बांधूं ।। ...अद्भुत
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ अलकनन्दा जी ! आपकी उपस्थिति सदैव उत्साह भरी ऊर्जा का संचार करती है । हृदयतल से बहुत बहुत आभार🙏
हटाएंमन के उठते भावों को बाँधना कई बार शब्दों से सम्भव होता है पर असल जिनको बाँधना हो वह कैसे बाँधा जाए ... विशाल अथाह हो बाँधना आसान कहाँ ... गहरी भावाव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंसृजन को सारगर्भित सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार नासवा जी ।
जवाब देंहटाएंअविरल भावों का सुंदर समायोजन । कल कल छल छल करती सुंदर कविता । बहुत शुभकामनाएं मीना को ।
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहसिक्त सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार 💐
हटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर ।
हटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहसिक्त सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार मैम 🙏
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-3-22) को "सैकत तीर शिकारा बांधूं"'(चर्चा अंक-4374)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
विशेष प्रस्तुति में मेरी रचनाओं का चयन हर्ष और गर्व का विषय है मेरे लिए.., बहुत बहुत आभार कामिनी जी!
हटाएंमैं अभिभूत हूँ मीना जी इतनी प्यारी रचना कि चार बार पढ़ गई जैसे कोई झांझरी झनकी हो शब्दों की।
जवाब देंहटाएंअभिनव।
बहुत बहुत आभार आपके मान भरे शब्दों हेतु 🙏
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