Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

रविवार, 26 दिसंबर 2021

"मेरे साथ चलोगी"

रोज ही मिलती थी

 वह...

बोरे सा कंधे पर डाले

स्कूल वाला बैग

एक अबूझ प्रतीक्षा में रत

जैसे अनजान डोर बंधी हो 

हमारे दरमियान...

मुझे देखते ही 

उसकी दंत पंक्ति चांदनी फूल सी 

खिल जाती और हम दोनों 

साथ-साथ

चल पड़ती अलग-अलग

गंतव्य की ओर...

एक दिन राह में

अपनी मुठ्ठी से उसने 

भर दी मेरी मुठ्ठी

देखा तो ...

सुर्ख बेर थे मेरी अंजुरी में

खट्टे -मीठे और रसीले

पहली बार

 मौन का अनावरण-

“हमारे खेत के हैं 

अब की बार खूब लगे हैं”

-”मेरे साथ चलोगी”

व्यवहारिकता की व्यस्तता में

उसने मुझे कब छोड़ा

और मैंने उसे कब 

याद नहीं…

मगर शरद में जब भी देखती हूँ

 लाल,पीले,हरे बेरों की ढेरियां

वह…

मेरी स्मृतियों के कपाट

खटखटा कर 

खड़ी हो जाती हैं मेरे सामने

और पूछती है-

“मेरे साथ चलोगी”

 ***


[चित्र:- गूगल से साभार ]





 



26 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के। लिए हार्दिक आभार सर!

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के। लिए हार्दिक आभार नीतीश जी!

      हटाएं
  3. ये मिठी स्मृतियां कभी साथ नहीं छोड़ती, गाहे-बगाहे याद आ ही जाती है, बचपन की सुनहरी यादों को समेटे बड़ी प्यारी रचना,सादर नमन मीना जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सत्य कथन कामिनी जी यादें अनमोल धरोहर होती हैं जीवन में...आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया ने सृजन को मान सम्पन्न सार्थकता प्रदान की । हृदय से आभार एवं सस्नेह वन्दन🙏🌹🙏

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मनोज जी।

      हटाएं
  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(28-12-21) को मेहमान कुछ दिन का अब साल है"(चर्चा अंक4292)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार कामिनी जी !

      हटाएं
  6. बहुत ही खूबसूरत यादों को व्यक्त करती सुंदर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार मनीषा जी!

      हटाएं
  7. "चल पड़ती अलग-अलग
    गंतव्य की ओर...
    एक दिन राह में
    अपनी मुठ्ठी से उसने
    भर दी मेरी मुठ्ठी"

    वाह बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार हर्ष महाजन जी।

      हटाएं
  8. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार अनीता जी!

      हटाएं
  9. बचपन की यादें मीठे बेर सी अपना स्वाद यदाकदा छोड़ ही जाती हैं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सत्य कथन अनीता जी यादें सचमुच अनमोल धरोहर होती हैं जीवन में... आपकी प्रतिक्रिया ने सृजन को मान सम्पन्न सार्थकता प्रदान की ।

      हटाएं
  10. बहुत ही मधुर होती हैं ऐसी स्मृतियाँ
    भुलाले नहीं भूल पाते
    लाजवाब सृजन
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  11. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया ने सृजन को मान सम्पन्न सार्थकता प्रदान की । हृदयतल से सस्नेह आभार सुधा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही सुंदर सृजन।
    शब्द शब्द अंतस को छूता।
    सादर स्नेह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया ने सृजन को मान सम्पन्न सार्थकता प्रदान की । हृदयतल से सस्नेह आभार अनीता जी!

      हटाएं
  13. जीवन्त स्मृतियाँ । अति सुन्दर ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार अमृता जी ।

      हटाएं
  14. वाह ……………मन के कोमल भावो का बहुत सुन्दर चित्रण किया है…………बेहद शानदार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार अनुज ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"