मेघों में छुपकर सोया है सूरज ,
या घन ने उसको ढका हुआ ।
भोर भी अब सांझ जैसी ,
भ्रम दृग पटल पर, पड़ा हुआ ।
चलने लगी सीली हवाएं ,
दिशाएं सभी गीली सी हुईं ।
बदला बदला सा सृष्टि आंगन ,
न जाने कैसी बात हुई ।
भीगे हुए हैं पुष्प दल सारे .
अलि पुंज भी सुप्त सा लग रहा ।
बदली हुई मनःस्थितियों में ,
बेमौसम की बरसात हुई ।
जीवमात्र ठिठुरे हैं सारे ,
कब दिन हुआ कब रात हुई
रुख बदल दो तुम्ही ऐ हवाओं !
मन तपस को तरस रहा ।।
***
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०३-१२ -२०२१) को
'चल जिंदगी तुझको चलना ही होगा'(चर्चा अंक-४२६७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच की चर्चा में रचना को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी !
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार 3 दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
पांच लिंकों का आनन्द पर सृजन साझा करने हेतु हार्दिक आभार श्वेता जी !
हटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार अनीता सुधीर जी !
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा..
हार्दिक आभार मनीषा जी !
हटाएंआज तो दिल्ली का और दिल का मौसम बिल्कुल ऐसा ही हो रहा जैसा बयाँ किया गया है ।।बहुत खूबसूरत रचना ।
जवाब देंहटाएंलेखन सार्थक हुआ मैम ! आपकी उपस्थिति सदैव उत्साह भरी ऊर्जा का संचार करती है । हृदयतल से बहुत बहुत आभार🙏
हटाएंचलने लगी सीली हवाएं ,
जवाब देंहटाएंदिशाएं सभी गीली सी हुईं ।
बदला बदला सा सृष्टि आंगन ,
न जाने कैसी बात हुई ।
भीगे हुए हैं पुष्प दल सारे .
अलि पुंज भी सुप्त सा लग रहा ।
वाह!!!
बदलते मौसम का बहुत ही सुन्दर शब्दचित्रण।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली..., हार्दिक आभार सुधा जी !
हटाएंबहुत ख़ूब मीना जी !
जवाब देंहटाएंमौसम तो नेताओं की तरह बेइमान हो गया है.
लेखन सार्थक हुआ सर ! आपकी उपस्थिति सदैव उत्साह भरी ऊर्जा का संचार करती है । हृदयतल से बहुत बहुत आभार🙏🙏
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार भारती जी !
हटाएंचलने लगी सीली हवाएं ,
जवाब देंहटाएंदिशाएं सभी गीली सी हुईं ।
बदला बदला सा सृष्टि आंगन ,
न जाने कैसी बात हुई ।
भीगे हुए हैं पुष्प दल सारे .
अलि पुंज भी सुप्त सा लग रहा ।
.सुंदर सराहनीय प्रस्तुति ।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली..., हार्दिक आभार जिज्ञासा जी !
हटाएंखूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली..., हार्दिक आभार सर !
हटाएंमौसम के बदलते मिज़ाज को इस तरह अल्फ़ाज़ में ढाल देना कोई आसान काम नहीं। बहुत ख़ूब मीना जी!
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली..., हार्दिक आभार जितेन्द्र जी !
हटाएंबदलते मौसम का बहुत ही सुन्दर चित्रण
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली..., हार्दिक आभार अनुज !
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