कांटें हैं पथ में फूल नहीं
चलना इतना आसान नहीं
यही सोच कर मन मेरा
संभल संभल पग धरता है
मन खुद ही खुद से डरता है
तू पेंडुलम सा झूल रहा
बस मृगतृष्णा में डूब रहा
कल आज कभी भी हुआ नही
फिर क्यों इतनी जिद्द करता है
मन खुद से क्यों छल करता है
कल हो जाएंगे पीत पात
नश्वर तन की कैसी बिसात
समय चक्र रुकता नही
बस आगे आगे चलता है
मन यह कैसी परवशता है
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