ताकती परवाज़े भरती
चील को..
बोझिल,तन्द्रिल दृग पटल मूंद
लेटकर…,
धूप खाती रजाईयों पर
शून्य की गहराईयों में
उतरना चाहती हूँ
लिख छोड़ी है
एक पाती तुम्हारे नाम
पढ़ ही लोगे
मेरे मन की बात
जे़हन में ताजा है मेरी
कितनी याद..
तुम्हारी आँखों में
उस बेलिखी इब़ारत को
देखना चाहती हूँ
ख़फा हूँ खुद से ही
ना जाने क्यों..
नाराजगी की वजह
कुछ तो रही होगी
फुर्सत मिलेगी तो
वहीं 'वजह'
ढूंढना चाहती हूँ
***
【चित्र :- गूगल से साभार】
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 8 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
"पांच लिंकों का आनन्द" में रचना साझा करने के लिए हार्दिक आभार पम्मी जी।
हटाएंवाह ! बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-09-2021) को चर्चा मंच "भौंहें वक्र-कमान न कर" (चर्चा अंक-4181) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा मंच पर सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार सर । कल की चर्चा में अवश्य उपस्थिति रहेगी ।
हटाएंसरलता में झांकती है वेदना,
जवाब देंहटाएंसुंदर हृदय स्पर्शी भाव गहरे तक उतरते ।
अभिनव सृजन,थोड़े में बहुत कुछ कहता।
हृदयस्पर्शी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार कुसुम जी!सस्नेह वन्दे!
हटाएंबेलिखी इबारत को लफ्ज़ देना कितना मुश्किल है न । फिर भी बेहद खूबसूरत लफ़्ज़ों में बयां किया है आपने । उम्दा नज़्म ।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थकता मिली । हार्दिक आभार अमृता जी! सस्नेह वन्दे !
हटाएंख़फा हूँ खुद से ही
जवाब देंहटाएंना जाने क्यों..
नाराजगी की वजह
कुछ तो रही होगी
फुर्सत मिलेगी तो
वहीं 'वजह'
ढूंढना चाहती हूँ
और वजह नहीं मिलती ।
आपकी स्नेहिल उपस्थिति हेतु हार्दिक आभार मैम! सस्नेह वन्दे ।
हटाएंख़फा हूँ खुद से ही
जवाब देंहटाएंना जाने क्यों..
नाराजगी की वजह
कुछ तो रही होगी
फुर्सत मिलेगी तो
वहीं 'वजह'
ढूंढना चाहती हूँ..मन में डोलते भावों को सुंदर शब्दों को पिरोती खूबसूरत रचना ।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आलोक सर।
जवाब देंहटाएंतुम्हारी आँखों में
जवाब देंहटाएंउस बेलिखी इब़ारत को
देखना चाहती हूँ
ना खुद से खफा हो ए दोस्त
जवाब देंहटाएंप्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
ना खुद से खफा हो ए दोस्त
प्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
ना खुद से खफा हो ए दोस्त
प्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
ना खुद से खफा हो ए दोस्त
प्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
ना खुद से खफा हो ए दोस्त
प्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
ना खुद से खफा हो ए दोस्त
प्रेम की बाकी है इब्तिदा अभी।
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
बहुत बहुत आभार वीरेन्द्र जी इतनी सुन्दर नज़्म साझा करने हेतु । सादर आभार आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु ।
हटाएंवाह! खूबसूरत दृश्य का चित्रण किया है आपने, इस वजह को ढूँढने के लिए ही तो उस रब ने धरती पर भेजा है
जवाब देंहटाएंसृजन का मान बढ़ाती इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए लिए आभारी हूँ अनीता जी ।
हटाएंख़फा हूँ खुद से ही
जवाब देंहटाएंना जाने क्यों..
नाराजगी की वजह
कुछ तो रही होगी
फुर्सत मिलेगी तो
वहीं 'वजह'
ढूंढना चाहती हूँ
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी ।
हटाएंख़फा हूँ खुद से ही
जवाब देंहटाएंना जाने क्यों..
नाराजगी की वजह
कुछ तो रही होगी
फुर्सत मिलेगी तो
वहीं 'वजह'
ढूंढना चाहती हूँ
बहुत सुंदर..
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार विकास जी!
जवाब देंहटाएंलिख छोड़ी है
एक पाती तुम्हारे नाम
पढ़ ही लोगे
मेरे मन की बात
जे़हन में ताजा है मेरी
कितनी याद..
बहुत खूब!
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ऊषा जी ।
हटाएंशब्द-शब्द बोल उठा है पढ़ ही लोगे मेरे मन की बात...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय मीना दी।
सादर
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार अनीता जी !
हटाएंखुद से नाराज्गो की वजह खोत्जा आसान तो होता है पर मन उसे मानना नहीं चाहता ... वो यूँ होता है न कभी कभी बस यूँ ही गुस्सा आता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार नासवा जी 🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर।
हटाएंख़फा हूँ खुद से ही
जवाब देंहटाएंना जाने क्यों..
नाराजगी की वजह
कुछ तो रही होगी
फुर्सत मिलेगी तो
वहीं 'वजह'
ढूंढना चाहती हूँ
खफा हुए कि कोई आकर मना ले पर उन्हें खबर न हुई
खफा ही रहे उम्र भर पर अब खफा की वजह ही पता नहीं
वाह!!!!
हार्दिक आभार सुधा जी !
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