आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-9-21) को "खेतों में झुकी हैं डालियाँ" (चर्चा अंक-4192) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी। ------------ कामिनी सिन्हा
सच में तब से आज तक चाँद को देखते हुए कितने ही भाव पले हैं मन में ...कुछ नये बने तो पुराने मिटे...पर चाँद वहीं और वैसा ही... बहुत ही हृदयस्पर्शी भावपूर्ण कृति। वाह!!!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 19 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
"पांच लिंकों का आनन्द" में रचना साझा करने के लिए सादर आभार दिग्विजय सर ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर।
हटाएंअनछुआ चाँद की अनछुई दास्तान । कोमलता से छुती हुई ... उफ़!
जवाब देंहटाएंआपकी हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया से लेखनी का मान बढ़ा।हार्दिक आभार अमृता जी ।
हटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार नीतीश जी।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-9-21) को "खेतों में झुकी हैं डालियाँ" (चर्चा अंक-4192) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
चर्चा मंच पर मेरे सृजन को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार कामिनी जी ।
हटाएंचांद से सुंदर विमर्श, मन को स्पर्श करती रचना ।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
हटाएंये चाँद से हुई गुफ़्तगू और स्वयं में बदलाव की दास्तान ।
जवाब देंहटाएंबहुत अपनी सी लगी । 👌👌👌
आपकी हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया से लेखनी का मान बढ़ा।हार्दिक आभार मैम 🙏
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जोशी सर!
हटाएंबहुत ही प्यारी रचना आदरणीय मैम
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मनीषा जी ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार भारती जी ।
हटाएंजी , बहुत सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार दीपक कुमार जी ।
हटाएंयादें ! कुछ हक्कित कुछ कलपनाऐं –
जवाब देंहटाएंजिन्दगी चाहें जितनी भी पुरानी हो जाऐं
ये हमेशा नई सी रहती है।
नन्हीं सी पर भाव से ओतपोत रचना । अति सुंदर !
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार ।
हटाएंसच में तब से आज तक चाँद को देखते हुए कितने ही भाव पले हैं मन में ...कुछ नये बने तो पुराने मिटे...पर चाँद वहीं और वैसा ही...
जवाब देंहटाएंबहुत ही हृदयस्पर्शी भावपूर्ण कृति।
वाह!!!
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार सुधा जी!
हटाएंसुंदरता से मन के भावों को स्पर्श करती रचना...!!
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार संजय जी ।
हटाएं