हे गोविंद.. हे कृष्ण मुरारी…
मंदिर की घंटियों सी
कानों मे गूंजती
मीठी सी आवाज से
खुलती थी नींद..
चाय की भाप की ओट से
उजला सा चेहरा
यूं लगता जैसे
धीमे से सुलगते
लोबान के पीछे
हो कोई मन्दिर की मूरत ...
बहुत सी बातें
चाँद -सितारों की
जीवन के सिद्धांतों की
मेरे अल्हड़पन की
देश-विदेश की
तुम्हारे नेहसिक्त सानिध्य की...
मगर इन सबके बीच
बहुत कुछ ऐसा है
जो रह गया अधूरा
उस आधूरेपन की कशिश
आज भी देती है खलिश
गाहे-बगाहे…
***
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 10 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"पांच लिंकों का आनन्द" में सृजन को साझा करने हेतु सादर आभार आदरणीय🙏🙏
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-8-21) को "बूँदों की थिरकन"(चर्चा अंक- 4152) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
चर्चा मंच पर सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार कामिनी जी!
हटाएंकान्हा को भावपूर्ण उद्बोधन प्रिय मीना जी | आखिर जीवन में अधूरापन अक्सर मन को व्याकुल करता है | ममता की छाया का कोई विल्कप कहाँ ! हार्दिक बधाई भावों से भरी रचना के लिए |
जवाब देंहटाएंमाँ की कमी की पूर्णता का अहसास केवल स्मृतियाँ ही करवा सकती हैं। आपकी अनमोल और हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए असीम आभार प्रिय रेणु जी!
हटाएंमगर इन सबके बीच
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ ऐसा है
जो रह गया अधूरा
उस आधूरेपन की कशिश
आज भी देती है खलिश
गाहे-बगाहे…-----मन में कहीं गहरे बैठ गई आपकी कविता। मार्मिक भाव और गहन लेखन।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार संदीप जी।
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जवाब देंहटाएंमगर इन सबके बीच
बहुत कुछ ऐसा है
जो रह गया अधूरा
उस आधूरेपन की कशिश
आज भी देती है खलिश
गाहे-बगाहे…
...बहुत सुंदर और ह्रिदय्स्पर्शी भाव।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
हटाएंमाँ के क्रिया कलाप और उसके साथ बिताए पल और फिर भी बहुत कुछ रह जाता जो नहीं बाँट सके । बहुत भावपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंआपकी उत्साह का संचार करती स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला हार्दिक आभार मैम 🙏🌹🙏
हटाएंबहुत सी बातें
जवाब देंहटाएंचाँद -सितारों की
जीवन के सिद्धांतों की
मेरे अल्हड़पन की
देश-विदेश की
तुम्हारे नेहसिक्त सानिध्य की...मन को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय मीना दी।
सादर
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार अनीता जी।
हटाएंमगर इन सबके बीच
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ ऐसा है
जो रह गया अधूरा
उस आधूरेपन की कशिश
आज भी देती है खलिश
गाहे-बगाहे… बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार अनुराधा जी।
हटाएंबहुत खूबसूरत पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार नीतीश जी।
हटाएंमाँ का साथ ही ऐसा है ... यादों में आती है किसी भी बात से किसी भी तरीके से और जाती नहीं कितनी देर तक ...
जवाब देंहटाएंगहरा एहसास और मन की भावनाओं का चित्रण ...
आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार नासवा जी ।
हटाएंबेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार मनोज जी।
हटाएंजो कमियां रह जाती हैं जो गाहे बगाहे परेशान करती ही हैं। ऐसा मिलाजुला अनुभव लगभग सभी के साथ होता है। बहुत बढ़िया और सार्थक सृजन। सादर।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार वीरेन्द्र जी।
हटाएंमाँ के बिना जीवन सचमुच अधूरा लगता है।
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहिल उपस्थिति के लिए हार्दिक आभार मीना जी ।
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