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सोमवार, 9 अगस्त 2021

"माँ"

                           



हे गोविंद.. हे कृष्ण मुरारी…

मंदिर की घंटियों सी

कानों मे  गूंजती

मीठी सी आवाज से

खुलती थी नींद..


चाय की भाप की ओट से

 उजला सा चेहरा

यूं लगता जैसे

धीमे से सुलगते

 लोबान के पीछे 

हो कोई मन्दिर की मूरत ...

 

बहुत सी बातें 

चाँद -सितारों की

जीवन के सिद्धांतों की

मेरे अल्हड़पन की

देश-विदेश की

तुम्हारे नेहसिक्त सानिध्य की...


मगर इन सबके बीच 

 बहुत कुछ ऐसा है

जो रह गया अधूरा

उस आधूरेपन की कशिश

 आज भी  देती है खलिश

गाहे-बगाहे…


***














26 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 10 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. "पांच लिंकों का आनन्द" में सृजन को साझा करने हेतु सादर आभार आदरणीय🙏🙏

      हटाएं
  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-8-21) को "बूँदों की थिरकन"(चर्चा अंक- 4152) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार कामिनी जी!

      हटाएं
  3. कान्हा को भावपूर्ण उद्बोधन प्रिय मीना जी | आखिर जीवन में अधूरापन अक्सर मन को व्याकुल करता है | ममता की छाया का कोई विल्कप कहाँ ! हार्दिक बधाई भावों से भरी रचना के लिए |

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    उत्तर
    1. माँ की कमी की पूर्णता का अहसास केवल स्मृतियाँ ही करवा सकती हैं। आपकी अनमोल और हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए असीम आभार प्रिय रेणु जी!

      हटाएं
  4. मगर इन सबके बीच

    बहुत कुछ ऐसा है

    जो रह गया अधूरा

    उस आधूरेपन की कशिश

    आज भी देती है खलिश

    गाहे-बगाहे…-----मन में कहीं गहरे बैठ गई आपकी कविता। मार्मिक भाव और गहन लेखन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार संदीप जी।

      हटाएं

  5. मगर इन सबके बीच
    बहुत कुछ ऐसा है
    जो रह गया अधूरा
    उस आधूरेपन की कशिश
    आज भी देती है खलिश
    गाहे-बगाहे…
    ...बहुत सुंदर और ह्रिदय्स्पर्शी भाव।

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।

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  6. माँ के क्रिया कलाप और उसके साथ बिताए पल और फिर भी बहुत कुछ रह जाता जो नहीं बाँट सके । बहुत भावपूर्ण रचना ।

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    उत्तर
    1. आपकी उत्साह का संचार करती स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला हार्दिक आभार मैम 🙏🌹🙏

      हटाएं
  7. बहुत सी बातें
    चाँद -सितारों की
    जीवन के सिद्धांतों की
    मेरे अल्हड़पन की
    देश-विदेश की
    तुम्हारे नेहसिक्त सानिध्य की...मन को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय मीना दी।
    सादर

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार अनीता जी।

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  8. मगर इन सबके बीच

    बहुत कुछ ऐसा है

    जो रह गया अधूरा

    उस आधूरेपन की कशिश

    आज भी देती है खलिश

    गाहे-बगाहे… बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार अनुराधा जी।

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  9. उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार नीतीश जी।

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  10. माँ का साथ ही ऐसा है ... यादों में आती है किसी भी बात से किसी भी तरीके से और जाती नहीं कितनी देर तक ...
    गहरा एहसास और मन की भावनाओं का चित्रण ...

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    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हार्दिक आभार नासवा जी ।

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  11. जो कमियां रह जाती हैं जो गाहे बगाहे परेशान करती ही हैं। ऐसा मिलाजुला अनुभव लगभग सभी के साथ होता है। बहुत बढ़िया और सार्थक सृजन। सादर।

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    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार वीरेन्द्र जी।

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  12. माँ के बिना जीवन सचमुच अधूरा लगता है।

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    1. आपकी स्नेहिल उपस्थिति के लिए हार्दिक आभार मीना जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"