गर्मजोशी से लबरेज़
तुम्हारा स्टेटस...
पुराने सन्दूक में छिपाये
उपन्यास जैसा लगा
मुझे वो भी प्रिय था
और तुम भी
तुम से
जुदाई के वक्त
अपने नेह पर
यकीन की खातिर
एक बार कहा था-
तुम ऑक्सीजन हो
हमारे खातिर
हमारी प्राणवायु….
आज तुम्हें देख कर
लगता है
तुम तो किसी और आंगन में
तुलसी,मनीप्लान्ट,
पीपल,बरगद
सब कुछ हो…
हम तो बस उस
पुराने वादे के साथ
निर्वात में जी रहे हैं
***
जवाब देंहटाएंतुम तो किसी और आंगन में
तुलसी,मनीप्लान्ट,
पीपल,बरगद
सब कुछ हो…
हम तो बस उस
पुराने वादे के साथ
निर्वात में जी रहे हैं
वाह!गज़ब दी 👌
प्रेम के एहसास में पगी अनमोल अभिव्यक्ति।
सादर
सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनीता जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 27 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसांध्य दैनिक मुखरित मौन में रचना साझा करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।
हटाएंज़िन्दगी में हम कितने भ्रम पालते हैं । बेहतरीन भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंजीवन का यह भी एक रूप है । उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मैम 🙏
हटाएंओह मर्म स्पर्शी रचना |
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनुपमा जी।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२८-०८-२०२१) को
'तुम दुर्वा की मुलायम सी उम्मीद लिख देना'(चर्चा अंक-४१७०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच प्रस्तुति में रचना सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार अनीता जी।
हटाएंवाह,शानदार । इस छोटी सी रचना का सार अंतर्मन को छू गया,बहुत गहन भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंआपकी हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार जिज्ञासा जी।
हटाएंगर्मजोशी से लबरेज़
जवाब देंहटाएंतुम्हारा स्टेटस...
पुराने सन्दूक में छिपाये
उपन्यास जैसा लगा
मुझे वो भी प्रिय था
और तुम भी
बहुत ह्रदयस्पर्शी पंक्तियाँ... बहुत बहुत बधाई हो आपको इस अति मार्मिक लेख के लिए
स्वागत आपकी प्रथम प्रतिक्रिया का ...,हृदय से आभार अनमोल प्रतिक्रिया हेतु ।
हटाएंबेहद गहन भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति प्रिय दी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह
सादर।
आपकी हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार श्वेता जी!सस्नेह वन्दे!
हटाएंबहुत सुंदर रचना, मीना दी।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी ।
हटाएंगहन भाव लिए लाजवाब भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंतुम तो किसी और आंगन में
तुलसी,मनीप्लान्ट,
पीपल,बरगद
सब कुछ हो…
हम तो बस उस
पुराने वादे के साथ
निर्वात में जी रहे हैं।
वाह!!!
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सुधा जी।
हटाएंखूबसूरत रचना...। आनंद आ गया...। वाह...।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार संदीप जी ।
हटाएंबहुत सुंदर...रिश्तों की डोर ऐसी ही होती है... कुछ ज्यादा कस कर बंधे होते और कुछ थोड़ा ढीले... ढीले बंधे हुए अक्सर आगे बढ़ जाते हैं और जो कस कर बंधे थे वो बंधे रह जाते हैं..
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने ..आपकी हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ विकास जी ।
हटाएंओह गज़ब कितने भ्रम में जीए जाते हैं हम और जब यही मोह निद्रा खुलती हैं आँखे मलते रहते हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, अभिनव, भावाभिव्यक्ति मीना जी।
सत्य कथन कुसुम जी !आपकी हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ । सस्नेह वन्दे ।
हटाएंपर यह निर्वात भी तो प्रेमोपहार ही है जिसे हम स्वीकार करते हैं । अति सुन्दर भाव एवं कथ्य ।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ अमृता जी ! सस्नेह वन्दे!
हटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंये पेड़, ये पौधे भी तो ऑक्सीजन का ही रूप हैं ...
साँसों को जीवित जो रखे वाही सब कुछ है ... बहुत भावपूर्ण रचना ...
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ नासवा जी । सादर वन्दे ।
हटाएंगागर में सागर।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार 🙏
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