सहज कहाँ है
इसको साधना
देख कर भी
करना पड़ता है अनदेखा
सहने पड़ते हैं
विष बुझे तीर..
गरल सा
पीना पड़ता है
न चाहते हुए भी
अपमान का घूंट
कभी कभी विवेक
दे कर..,
स्वाभिमान का ताना
फूटना चाहता है
आक्रोश बन लावे सा
तब..
बुद्धि समझदारी की
चादर ओढ़ कर
बन जाती है माँ…
लोरी सी थपकी
के साथ
अन्तस् में उठता
एक ही भाव….
बड़ी दुर्लभ है यह
किलो या ग्राम में
कहाँ मिलती है
दुनिया के बाजारों में
कितनी ही ..
आत्म-पराजयों के बाद
खुद की जय से
सधती है खामोशी ….
★★★
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,मीना दी।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार ज्योति जी।
हटाएंबड़ी दुर्लभ है यह
जवाब देंहटाएंकिलो या ग्राम में
कहाँ मिलती है
दुनिया के बाजारों में
कितनी ही ..
आत्म-पराजयों के बाद
खुद की जय से
सधती है खामोशी ….वाह अद्भुत सृजन।
उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ अनुराधा जी ।
हटाएंजब बात हद से गुज़र जाए तो आक्रोश फूटना तो चाहता है लेकिन स्वयं की स्थिति खामोश रहने पर मजबूर कर देती है ।
जवाब देंहटाएंऔर धीरे धीरे ये आदत में बदल जाती है और लगता है कि खामोशी को साध लिया ।
गहन चिंतन ।
अश्व को साधने जैसा ही है भावावेश को साधना । निर्बलता आते ही नियन्त्रण भी फिसल जाता है हाथों से..कहीं पढ़ा था कभी। एक छोटी सी कोशिश..,मन की बात कहने की।आपकी प्रतिक्रिया सदैव पूर्णता प्रदान करती है मेरे सृजन को। इस स्नेह के लिए हृदयतल से असीम आभार मैम 🙏🌹🙏
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३१-०७-२०२१) को
'नभ तेरे हिय की जाने कौन'(चर्चा अंक- ४१४२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच पर सृजन को मान देने के लिए हृदय से आभार
हटाएंअनीता जी ।
सटीक।
जवाब देंहटाएंमौन होने के लिए सबसे ज्यादा खुद से ही लड़ना होता है संयम का सबसे दुर्लभ रूप है खामोशी।
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति मीना जी, गागर में सागर।
मेरे सृजन का मान बढ़ाती उत्साहवर्धन करती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ कुसुम जी ! आपकी प्रतिक्रिया सदैव मेरी लेखनी को सार्थकता प्रदान करती है । हृदय की गहराइयों से असीम आभार 🙏🌹🙏
हटाएंबड़ी दुर्लभ है यह
जवाब देंहटाएंकिलो या ग्राम में
कहाँ मिलती है
दुनिया के बाजारों में
कितनी ही ..
आत्म-पराजयों के बाद
खुद की जय से
सधती है खामोशी ….
बहुत सुंदर मैम...
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार विकास जी!
हटाएंबहुत सच्ची बात कही है मीना जी आपने। इसे मैंने स्वयं सहा भी है, साधा भी है। ख़ामोश इंसान ने ख़ामोश होने से पहले कितना ज़हर पिया है, यह वही जानता है।
जवाब देंहटाएंसृजन की सार्थकता को सारगर्भित अर्थ देती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जितेन्द्र जी 🙏
हटाएंख़ामोशी को साधना वाकई में बहुत कठिन है। लेकिन जो साध लेते हैं वे भी क्या लोग होते हैं। सुंदर और सार्थक सृजन के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थकता प्रदान करती सारगर्भित सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार वीरेंद्र जी ।
हटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर!
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बड़ी बात...सच में खुद से जीतकर ही मिल पाती है खामोशी...बड़ी कठिन साधना है यह भी पर जब शब्दों की कोई कीमत न रह जाय तब खामोशी अपनाना बड़ी समझदारी का काम है
बहुत ही सुन्दर चिन्तनपरक लाजवाब सृजन।
सृजन को सार्थकता प्रदान करती सारगर्भित सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सुधा जी!
हटाएंदुनिया के बाजारों में
जवाब देंहटाएंकितनी ही ..
आत्म-पराजयों के बाद
खुद की जय से
सधती है खामोशी ….गहनतम सृजन...।
उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार संदीप जी !
हटाएंमारक अथवा विजित प्राप्य है ये साध्य... मौन अथवा खामोशी का । साधने वाला से बेहतर भला कौन कह सकता है । अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंसृजन की सार्थकता को सारगर्भित अर्थ के साथ परिभाषित करती हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ अमृता जी🙏
हटाएंमौन की साधना किसी को भी अनंत विजय दिला सकती है,परंतु ये सबके लिए सम्भव कहाँ है,सुंदर गूढ़ रचना के लिए बहुत बधाई मीना जी।
जवाब देंहटाएंसृजन को प्रवाह प्रदान करती आपकी उर्जावान प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली और मुझे नवउत्साह । आपके स्नेहिल प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ जिज्ञासा जी !
हटाएंउत्कृष्ट रचना - - साधुवाद सह।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार शांतनु सर!
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