कई दिनों से
लगातार..
बरस रहे हैं
काले बादल
तुम्हारी तरफ से
आने वाली
पछुआ के साथ
अंजुरी भर धूप की
एक गठरी भेज दो
उन्हीं के छोर से
मैं भी बांध दूंगी
थोड़ी सी नमी
धूसर बादल के साथ
पता है.. जब,
धरती पर उतरते
बादलों के संग
पानी की बौछारें
बरसती हैं
धुआं सी तो,
दृग पटल भी
थक कर
धुंधलाये से लगते हैं
कब निकलेगा
बादलों की ओट से
सुनहरी धूप का टुकड़ा
बस…,
उसी की राह तकते हैं
★★★
वाह!लाजवाब दी 👌
जवाब देंहटाएंकल दिन के अंतिम पहर में
भेजा है मैंने धूप का एक टुकड़ा
दुआओं की लीर में लपेटकर
तुम्हारे लिए
तुमने भी वादा किया था
बौछारों के साथ
स्नेह का बंडल भेजने का...।
बहुत बहुत सुंदर सृजन सराहनीय।
सादर
आपकी नेह पगी प्रतिक्रिया ने मेरे सृजन को पूर्णता प्रदान की अनीता जी । अभिभूत हूँ आपकी प्रतिक्रिया पा कर...हृदयतल से असीम आभार । सस्नेह वन्दे ।
हटाएंबहुत सुंदर सृजन, मीना दी।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी।
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मनीषा जी!
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२५-०७-२०२१) को
'सुनहरी धूप का टुकड़ा.'(चर्चा अंक-४१३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच पर सृजन को मान देने के लिए हृदय से आभार
जवाब देंहटाएंअनीता जी । चर्चा के शीर्षक के रूप में भी सृजन को मान देने के लिए आभारी हूँ ।
धुआँ धार बारिश के बाद सच ही सुनहरी धूप की ज़रूरत होती है । सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की., असीम आभार मैम 🙏
हटाएंआशा और जिजीविषा की सुनहरी धूप ... अति सुन्दर भाव सृजन ।
जवाब देंहटाएंआपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की., असीम आभार अमृता जी!
हटाएंउम्मीद की किरण बिखेरती सुन्दर,सार्थक रचना, बहुत शुभकामनाएं मीना जी।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंबहुत खूब लिखा है। हमारे यहाँ कुछ उल्टा हो रखा है। धूप है। तेज उमस है और झमाझम बारिश का बेसब्री से इंतज़ार है। उम्मीद है इंद्रदेव निराश नहीं करेंगे। सादर।
जवाब देंहटाएंआपके यहाँ भी बारिश होने लगी होगी । प्रकृति और इन्द्र देव की कृपा देर-सवेर हो ही जाएगी । हार्दिक आभार वीरेन्द्र जी सृजन सराहना हेतु ।
हटाएंहर ऋतु की अपनी विशेषता होती है । उसका जाना भी वैसे ही खलने लगता है जैसे प्रिय का जाना । बेहद सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम हार्दिक स्वागत आपका "मंथन" आपकी सारगर्भित अनमोल प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की । हार्दिक आभार सुनीता जी!
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर!
हटाएं
जवाब देंहटाएंथक कर
धुंधलाये से लगते हैं
कब निकलेगा
बादलों की ओट से
सुनहरी धूप का टुकड़ा
बस…,
उसी की राह तकते हैं
काले गरजते बादल जब दृगपटल पर छा जाते जते हैं तो सुनहरी धूप की खुशियाँ बस दृग पटलों के बाहर ही खड़ी हैं मानों बस जितना बरसना हैं बरसे ये मेघा फिर तो खुशियों की धूप चमकनी ही है।
बहुत सुन्दर सृजन
वाह!!!
आपकी सराहनीय सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की । हार्दिक आभार सुधा जी!
हटाएं