भोर की वेला
सुरभित कुसुम
मृदु समीर
हिमाद्रि आंगन में
नैसर्गिक सुषमा
सावन भोर
धरती के पाहुन
धूसर घन
उतरे अम्बर से
छम छम बरसे
मध्याह्न वेला
बाँस के झुरमुट
मंद बयार
बौराई सी चलती
सरगम बजती
सिंदूरी जल
कर में पतवार
नैया में मांझी
लहरों का गर्जन
बड़ी दूर किनारा
★★★
प्रकृति संग
जवाब देंहटाएंचल पड़ी कलम
सुंदर तांका
पढ़ लिए हमने
लिखे हैं जो तुमने ।
👌👌👌👌👌
हटाएंआपके सृजन की ...,हौसला अफजाई की जितनी प्रशंसा करूं कम होगी 🙏🌹🙏 तहेदिल से शुक्रिया मैम !
वाह!बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन दी।
जवाब देंहटाएंसादर
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनीता जी।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मनोज जी।
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ओंकार सर।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-7-21) को "प्राकृतिक सुषमा"(चर्चा अंक- 4131) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
चर्चा मंच पर सृजन को मान देने के लिए हृदय से आभार कामिनी जी । चर्चा के शीर्षक के रूप में भी सृजन को मान देने के लिए आभारी हूँ 🙏
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जवाब देंहटाएंभोर की वेला
सुरभित कुसुम
मृदु समीर
हिमाद्रि आंगन में
नैसर्गिक सुषमा...प्रकृति को सुंदरता प्रदान करती उत्कृष्ट रचना
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला...हार्दिक आभार जिज्ञासा जी ।
हटाएंगगन झनझना रहा, पवन सनसना रहा !
जवाब देंहटाएंलहर-लहर पे आज है तूफान, हो नैया वाले हो सावधान
काव्यात्मक प्रतिक्रिया से सृजन को मान देने के लिए बहुत बहुत आभार सर।
हटाएंअति मनमोहक बिंब से सजी बहुत सुंदर सृजन दी।
जवाब देंहटाएं----
कुछ पंक्तियाँ अनायास ही उमड़ी आपकी रचना पढ़कर
गिरि शिख छू
इतराये बादल
फैलाये पंख
व्योम विटप ढका
बरसा श्वेत फूल
----/----
प्रणाम दी
सादर।
वाह!! लाजवाब सृजन श्वेता जी!आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ...हार्दिक आभार।
हटाएंमध्याह्न वेला
जवाब देंहटाएंबाँस के झुरमुट
मंद बयार
बौराई सी चलती
सरगम बजती
बेहद खूबसूरत सृजन सखी।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ...हार्दिक आभार सखी।
हटाएंवाह! मीना जी प्रकृति पर सुंदर कसीदा सा ताँका।
जवाब देंहटाएंमोहक सृजन ।
मंदाकिनी से आकर्षित करते भाव ।
अहा!!
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली... हार्दिक आभार कुसुम जी ।
हटाएंसिंदूरी जल
जवाब देंहटाएंकर में पतवार
नैया में मांझी
लहरों का गर्जन
बड़ी दूर किनारा---सुंदर और अनुपम सृजन।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार संदीप जी।
हटाएंप्रकृति से जुड़े हुए खूबसूसरत ताँका...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार विकास जी ।
हटाएंपहली बार "ताँका" पढ़ा है। बहुत बढ़िया लगा। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। उत्कृष्ट साहित्यकारों / रचनाकारों के ब्लॉग पर आने से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इस लिहाज से बधाई अपने आप को भी आपके ब्लॉग पर आने के लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार वीरेन्द्र जी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए । मैं भी सीख ही रही हूँ आपकी तरह..इतना सम्मान देना आपका बड़प्पन और सहृदयता है 🙏
हटाएंमध्याह्न वेला
जवाब देंहटाएंबाँस के झुरमुट
मंद बयार
बौराई सी चलती
सरगम बजती... वाह, क्या कहा जाए... बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली... हार्दिक आभार 'हृदयेश' सर !
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