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सोमवार, 19 जुलाई 2021

प्राकृतिक सुषमा【ताँका】

भोर की वेला

सुरभित कुसुम

मृदु समीर

हिमाद्रि आंगन में

नैसर्गिक सुषमा


सावन भोर

धरती के पाहुन

धूसर घन

उतरे अम्बर से

छम छम बरसे


मध्याह्न वेला

बाँस के झुरमुट

मंद बयार

बौराई सी चलती

सरगम बजती


सिंदूरी जल

कर में पतवार

नैया में मांझी

लहरों का गर्जन

बड़ी दूर किनारा


★★★




28 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति संग
    चल पड़ी कलम
    सुंदर तांका
    पढ़ लिए हमने
    लिखे हैं जो तुमने ।

    👌👌👌👌👌

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    उत्तर

    1. आपके सृजन की ...,हौसला अफजाई की जितनी प्रशंसा करूं कम होगी 🙏🌹🙏 तहेदिल से शुक्रिया मैम !

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  2. वाह!बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन दी।
    सादर

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    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनीता जी।

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मनोज जी।

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ओंकार सर।

      हटाएं
  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-7-21) को "प्राकृतिक सुषमा"(चर्चा अंक- 4131) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर सृजन को मान देने के लिए हृदय से आभार कामिनी जी । चर्चा के शीर्षक के रूप में भी सृजन को मान देने के लिए आभारी हूँ 🙏

      हटाएं

  6. भोर की वेला
    सुरभित कुसुम
    मृदु समीर
    हिमाद्रि आंगन में
    नैसर्गिक सुषमा...प्रकृति को सुंदरता प्रदान करती उत्कृष्ट रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला...हार्दिक आभार जिज्ञासा जी ।

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  7. गगन झनझना रहा, पवन सनसना रहा !
    लहर-लहर पे आज है तूफान, हो नैया वाले हो सावधान

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. काव्यात्मक प्रतिक्रिया से सृजन को मान देने के लिए बहुत बहुत आभार सर।

      हटाएं
  8. अति मनमोहक बिंब से सजी बहुत सुंदर सृजन दी।
    ----
    कुछ पंक्तियाँ अनायास ही उमड़ी आपकी रचना पढ़कर
    गिरि शिख छू
    इतराये बादल
    फैलाये पंख
    व्योम विटप ढका
    बरसा श्वेत फूल
    ----/----
    प्रणाम दी
    सादर।


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    उत्तर
    1. वाह!! लाजवाब सृजन श्वेता जी!आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ...हार्दिक आभार।

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  9. मध्याह्न वेला

    बाँस के झुरमुट

    मंद बयार

    बौराई सी चलती

    सरगम बजती
    बेहद खूबसूरत सृजन सखी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ...हार्दिक आभार सखी।

      हटाएं
  10. वाह! मीना जी प्रकृति पर सुंदर कसीदा सा ताँका।
    मोहक सृजन ।
    मंदाकिनी से आकर्षित करते भाव ।
    अहा!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली... हार्दिक आभार कुसुम जी ।

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  11. सिंदूरी जल

    कर में पतवार

    नैया में मांझी

    लहरों का गर्जन

    बड़ी दूर किनारा---सुंदर और अनुपम सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार संदीप जी।

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  12. प्रकृति से जुड़े हुए खूबसूसरत ताँका...

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  13. पहली बार "ताँका" पढ़ा है। बहुत बढ़िया लगा। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। उत्कृष्ट साहित्यकारों / रचनाकारों के ब्लॉग पर आने से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इस लिहाज से बधाई अपने आप को भी आपके ब्लॉग पर आने के लिए।

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार वीरेन्द्र जी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए । मैं भी सीख ही रही हूँ आपकी तरह..इतना सम्मान देना आपका बड़प्पन और सहृदयता है 🙏

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  14. मध्याह्न वेला

    बाँस के झुरमुट

    मंद बयार

    बौराई सी चलती

    सरगम बजती... वाह, क्या कहा जाए... बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली... हार्दिक आभार 'हृदयेश' सर !

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"