जब नित्य लगे सांझ घिरने,
घर- आंगन में गौरेया सी।
आ जाती हैं मन के द्वारे,
ये सुधियां भी अवचेतन सी।।
जो बीत गया जीवित करती,
दृग पट पर नव सृष्टि रचती।
गिरने से पूर्व संभलने का,
करती संकेत सीखने का।।
खुद का अस्तित्व बचाने में,
बस जीवन बीता जाता है।
सौ झंझट हैं तो हुआ करे,
बस कर्मयोग से नाता है।।
तारों के झिलमिल आंगन में,
लो ! संध्या डूबी जाती है।
आने में हो जाती अबेर,
यह सोच निशा पछताती है।।
आलोक रश्मियां धुंधली सी,
मेरे अन्तस् का तम हरतीं ।
निर्बल क्षण में संबल बनती,
मुझ में विलीन ये मुझ जैसी।।
***
बहुत ही सुंदर सृजन मन को मोहता।
जवाब देंहटाएंतारों के झिलमिल आंगन में,
लो ! संध्या डूबी जाती है।
आने में हो जाती अबेर,
यह सोच निशा पछताती है।।
आलोक रश्मियां धुंधली सी,
मेरे अन्तस् का तम हरतीं ।
निर्बल क्षण में संबल बनती,
मुझ में विलीन ये मुझ जैसी...बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
सादर
सुन्दर सराहना भरी प्रतिक्रिया रूपी उपस्थिति के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।
हटाएंखुद का अस्तित्व बचाने में,
जवाब देंहटाएंबस जीवन बीता जाता है।
सौ झंझट हैं तो हुआ करे,
बस कर्मयोग से नाता है।।
कर्म ही प्रधान है और कर्म से ही अस्तित्व और पहचान है...
बहुत ही सुन्दर एव़ सार्थक सृजन
वाह!!!
मनोबल संवर्द्धन करती सराहनीय प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सुधा जी । सस्नेह वन्दे ।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१७-०७-२०२१) को
'भाव शून्य'(चर्चा अंक-४१२८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच पर सृजन को मान देने के लिए हृदय से आभार अनीता जी!
हटाएं
जवाब देंहटाएंखुद का अस्तित्व बचाने में,
बस जीवन बीता जाता है।
सौ झंझट हैं तो हुआ करे,
बस कर्मयोग से नाता है।।..बहुत खूबसूरत और आशा से भरी पंक्तियां, सुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
उत्साहवर्धन करती स्नेहिल प्रतिक्रिया स्वरूपी उपस्थिति के लिए असीम आभार जिज्ञासा जी ।
हटाएंबहुत अच्छी कविता रची है मीना जी आपने। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है आज के मानव जीवन का कि ख़ुद का अस्तित्व बचाने में बस जीवन बीता जाता है।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया सदैव सृजन को सार्थकता और मान देती है । हृदयतल से आभार जितेन्द्र जी!
हटाएंमन को मोहित कर देने वाला खूबसूरत शब्दों से सजा बहुत ही सुंदर सृजन!
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मनीषा जी!
हटाएंकर्मयोग ही सार्थक उपाय है ख़ुद के अस्तित्व को बचाने का …
जवाब देंहटाएंअंतस में स्वयं से ही दीप प्रजवल्लित होता है और तम हरता है … बहुत सुंदर गेयता लिए मन को छूती रचना …
आपकी प्रतिक्रिया सदैव सृजन को मान सम्पन्न सार्थकता प्रदान करती है । हृदयतल से आभार नासवा जी!
हटाएंआलोक रश्मियां धुंधली सी,
जवाब देंहटाएंमेरे अन्तस् का तम हरतीं ।
निर्बल क्षण में संबल बनती,
मुझ में विलीन ये मुझ जैसी।।
बेहद खूबसूरत रचना सखी।
उत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी!
हटाएंखुद का अस्तित्व बचाने में,
जवाब देंहटाएंबस जीवन बीता जाता है।
सौ झंझट हैं तो हुआ करे,
बस कर्मयोग से नाता है।।---बहुत खूब...बहुत अच्छा लिखा है आपने मीना जी।
सृजन को मान सम्पन्न सार्थकता प्रदान करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार संदीप जी!
हटाएंभले ही कहीं
जवाब देंहटाएंसांझ घिरने का
एहसास हो
फिर भी मन में
रश्मियों का उजास हो ,
कर्म को प्रधान रख ,
आगे बढ़ने का प्रयास हो ,
तब आये कितनी ही बाधाएँ ,
सब को पार कर लोगी
मन के तम को तुम
अपनी ऊर्जा से हर लोगी ।
बहुत सुंदर भाव लिए बेहतरीन रचना ।
मेरे लेखन में ऊर्जा भरने के लिए आपका ढेर सारा आभार मैम 🙏🌹🙏 आपकी स्नेहिल उपस्थिति से सृजन को सार्थकता मिली ।
हटाएंइस घिरती हुई सांझ में न जाने कितने बिंब-प्रतिबिंब अवचेतन से चेतन हो उठें हैं । माधुर्य भाव का ये हिलोरा.... अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहिल और अपनत्व से पगी प्रतिक्रिया सदैव मनोबल संवर्द्धन करती है । हार्दिक आभार अमृता जी🙏🌹🙏
हटाएंआलोक रश्मियां धुंधली सी,
जवाब देंहटाएंमेरे अन्तस् का तम हरतीं ।
निर्बल क्षण में संबल बनती,
मुझ में विलीन ये मुझ जैसी
बहुत सुंदर रचना
मनोबल संवर्द्धन करती सराहनीय प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार भारती जी ।
हटाएंमनस्वियों सा गहन चिंतन देती गागर में सागर भरती अभिनव कृति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मीना जी ,कर्म योग पर आस्था और निज के अंदर के आलोक को संबल बनाना कितने मधुरिम उत्तम भाव । बहुत सुंदर सृजन।
आपकी स्नेहिल और अपनत्व से पगी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया सदैव मेरे सृजन को मान देकर मेरा मनोबल संवर्द्धन करती है । हार्दिक आभार कुसुम जी!
हटाएंखुद का अस्तित्व बचाने में,
जवाब देंहटाएंबस जीवन बीता जाता है।
सौ झंझट हैं तो हुआ करे,
बस कर्मयोग से नाता है।।
यदि कर्मयोगी हो गए तो जीवन सरल हो जाएगा,सुंदर भावाभिव्यक्ति मीना जी,सादर
उत्साहवर्धन करती स्नेहिल प्रतिक्रिया स्वरूपी उपस्थिति के लिए असीम आभार कामिनी जी!
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमनोबल संवर्द्धन करती सराहनीय प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक
हटाएंआभार सर!
वाह
जवाब देंहटाएंमनोबल संवर्द्धन करती सराहनीय प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक
हटाएंआभार सर!