बादल!
सावन में अब की
बरसो तो…
लाना कुछ ऐसा
जिससे हो
इम्यूनिटी बूस्ट
जरूरत है उसकी
मनु संतानों को
जो रख सके
उनके श्वसन को मजबूत
चन्द्र देव!
बड़े इठला रहे हो
यह ठसक
किस काम की ?
जब...
सदियों से तुम्हारी प्रशंसा में
कसीदे पढ़ने वालों की
नींव...
दरक रही है धीरे-धीरे
सुनो !
जड़-चेतन साझा सहभागी हैं
प्रकृति के ..,
हम भी उन्हीं की संतान हैं
और माँ की नजर में तो
सभी समान है
माना कि..
हो गई मानव से कुछ गलतियां
खुद को सृष्टि में सबसे
ताकतवर और बुद्धिमान
समझने की गलतफहमियां
अब बस भी करो…
कितनी सजा और दिलवाओगे
अगर न रहा मनुज
तो अपने आप में अधूरेपन की
सजा तुम भी तो पाओगे
***
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु सादर हार्दिक आभार सर!
हटाएंसच जब इंसान रहेगा तभी तो नाराजगी भी जिन्दा रहेगी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सामयिक रचना
उत्साहवर्धन हेतु सादर हार्दिक आभार कविता जी ।
हटाएंअब बस भी करो…
जवाब देंहटाएंकितनी सजा और दिलवाओगे
अगर न रहा मनुज
तो अपने आप में अधूरेपन की
सजा तुम भी तो पाओगे
बहुत सुंदर सम सामयिक रचना,मीना दी।
उत्साहवर्धन हेतु सादर हार्दिक आभार ज्योति जी ।
हटाएंमाना कि हो गईं गलतियाँ , लगता है प्रकृति का क्रोध अभी शांत नहीं हुआ है । न जाने क्या सोच रखा है ।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक बेहतरीन रचना ।
उत्साहवर्धन हेतु सादर हार्दिक आभार आ.संगीता जी।
हटाएंवाह, बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु सादर हार्दिक आभार शिवम् जी।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (21-05-2021 ) को 'मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये' (चर्चा अंक 4072 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
चर्चा मंच की प्रस्तुति में सृजन को सम्मिलित करने हेतु सादर आभार रवीन्द्र सिंह जी।
हटाएंसामयिक कृति....
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार विकास जी।
हटाएंसुन्दर कृति....
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रथम टिप्पणी हेतु सादर आभार ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना सखी
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु सादर हार्दिक आभार सखी ।
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआपकी सुन्दर सी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार अनीता जी।
हटाएंआदरणीया मीनाजी, एक गीत की पंक्तियाँ याद आती हैं-
जवाब देंहटाएं"लम्हों ने खता की थी,
सदियों ने सजा पाई !"
यहाँ तो सदियों से खता करता रहा है मानव, फिर भी विश्वास है कि माँ प्रकृति उसे क्षमा कर ही देगी।
काश ! इस बार की बारिश रोग शोक को बहा ले जाए अपने साथ....
माँ प्रकृति मानव भूलों को क्षमा करें और रोग शोक का शमन करें ..यहीं कामना है मीना जी ! आपकी मर्मस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
हटाएंअगर न रहा मनुज
जवाब देंहटाएंतो अपने आप में अधूरेपन की
सजा तुम भी तो पाओगे//
सच है प्रिय मीना जी ! प्रकृति से अनुरोध और प्रार्थना के सिवाय चारा भी क्या ? दूसरे मानव के बिना उनकी महिमा भी कौन बढ़ाएगा | अतुलनीय भावों से सजी रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं|
आपकी मर्मस्पर्शी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ प्रिय रेणु जी । सच कहा आपने प्रकृति से अनुरोध और प्रार्थना ही कर सकते हैंं ।
हटाएंअब बस भी करो…
जवाब देंहटाएंकितनी सजा और दिलवाओगे
अगर न रहा मनुज
तो अपने आप में अधूरेपन की
सजा तुम भी तो पाओगे..समसामयिक दर्द साझा करती एवम एवम विनम्र प्रार्थना से परिपूर्ण भावों भरी रचना ।बहुत शुभकामनाएं आदरणीय मीना जी ।
उत्साहवर्धन करती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार जिज्ञासा जी ।
हटाएंनाराजगी और मनाना तो होता है जीवन में ...
जवाब देंहटाएंहर मौसम की तरह बादल भी नया मौसम ले के आत हैं ... आप भी शब्दों से बादल ले आए और एक अलग अंदाज़ से रचना लिख दी आपने ...बहुत सुन्दर ...
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की । हार्दिक आभार नासवा जी ।
हटाएंकितनी सजा और दिलवाओगे
जवाब देंहटाएंअगर न रहा मनुज
तो अपने आप में अधूरेपन की
सजा तुम भी तो पाओगे
बिलकुल पाएंगे...हमारे बिना क्या कर पाएंगे...कौन पूजेगा उन्हें
बेहद प्यारी उलाहना मीना जी, मेरी बेटी भी ऐसे ही भगवान से शिकायत करती है।
मन जब थकने हारने लगता है तो परमात्मा के अलाव किससे शिकायत करे। बेहद प्यारी रचना
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की । हार्दिक आभार कामिनी जी ।
हटाएंबादल!
जवाब देंहटाएंसावन में अब की
बरसो तो…
लाना कुछ ऐसा
जिससे हो
इम्यूनिटी बूस्ट
जरूरत है उसकी
मनु संतानों को
जो रख सके
उनके श्वसन को मजबूत
बस अब सावन के बादलों से ही उम्मीद है...इम्यूनिटी बूस्ट की...ज्येष्ठ की तपिश ने तो निराश कर दिया ...
बहुत ही सुन्दर समसामयिक ...
लाजवाब सृजन।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की । हार्दिक आभार सुधा जी!
जवाब देंहटाएंजरूरत है उसकी
जवाब देंहटाएंमनु संतानों को
जो रख सके
उनके श्वसन को मजबूत
बस अब सावन के बादलों से ही उम्मीद है