लबों को रहने दो खामोश
काफी है,
आँखों की मुस्कुराहट ।
बर्फ ही तो है
इस आँच से ,
बह निकलेगी ।
**
हौंसला और जिजिविषा
देन है तुम्हारी ।
विश्वास की डोर का
छोर भी ,
तुम्हीं से बंधा है ।
जानती हूँ
रात के आँचल के छोर से,
यूं ही तो बंधी होती है ।
उजली भोर के,
सुनहरे आँचल की गाँठ ।
**
कई बार
अनुभूत पलों का,
मुड़ा-तुड़ा कोई पन्ना ।
बाँचना चाहती हैं आँखें ,
मगर
इज़ाज़त कहाँ देता है ,
जटिल बुनावट वाला विवेक ।
समझदारी के फेर में
कस कर मूंद देता है ,
सुधियों भरा संदूक ।
**
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (03-05 -2021 ) को भूल गये हैं हम उनको, जो जग से हैं जाने वाले (चर्चा अंक 4055) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
चर्चा मंच की प्रस्तुति में सृजन को सम्मिलित करने हेतु सादर आभार रवीन्द्र सिंह जी।
हटाएंविश्वास की डोर का
जवाब देंहटाएंछोर भी ,
तुम्हीं से बंधा है ।
जानती हूँ
रात के आँचल के छोर से,
यूं ही तो बंधी होती है ।
उजली भोर के,
सुनहरे आँचल की गाँठ ।---वाह...कितना खूबसूरत लिखा है आपने मीना जी। बहुत बधाई। सभी पंक्तियां अपने अर्थ पर खरी उतर रही हैं।
आपकी सराहना सम्पन्न टिप्पणी ने लेखन का मान बढ़ाते हुए उत्साहवर्धन किया । हार्दिक आभार संदीप शर्मा जी ।
हटाएं**
जवाब देंहटाएंहौंसला और जिजिविषा
देन है तुम्हारी ।
विश्वास की डोर का
छोर भी ,
तुम्हीं से बंधा है ।
जानती हूँ
रात के आँचल के छोर से,
यूं ही तो बंधी होती है ।
उजली भोर के,
सुनहरे आँचल की गाँठ ।...बहुत सुंदर लिखा है,मीना जी,इस क्षणिका ने तो मन मोह लिया,दर्द नमन आपको ।
आपकी सराहना सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी ।
हटाएंवाह क्या खूब लिखा आपने
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सुजाता जी ।
हटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सराहना भरी टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार शिवम् जी।
हटाएंसमझदारी का फेर वाक़ई इतना भी नहीं होना चाहिए मीना जी कि सुधियों की भी सुध लेना हमसे छूट जाए। ज़िन्दगी यादों के बिना है ही क्या? बहुत अच्छी क्षणिकाएं हैं ये आपकी।
जवाब देंहटाएंइसलिए तो विवेक को जटिल बुनावट वाला कहा..मन की सरलता तो वहीं रहती है ना अतीत की वीथियों में । बहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी इतने सुन्दर कथ्य के लिए ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर क्षणिकाएँ...
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार विकास जी।
हटाएंजी बढ़िया है...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रकाश जी।
हटाएंबहुत गहरी अभिव्यक्ति ... क्षणिकाओं की खूबी यही ही वो सोचने को मजबूर बाल्टी हैं ... अनेक अर्थ निकल के आते हैं ...
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न टिप्पणी ने लेखन का मान बढ़ाते हुए उत्साहवर्धन किया । हार्दिक आभार नासवा जी ।
हटाएंसोचने को मजबूर करती बहुत ही सुंदर क्षणिकाएं, मीना दी।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी।
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक सर.
हटाएंपग-पग पर जीवन इन्हीं विरोधाभासों से ही उलझाकर डांवाडोल करता रहता है । अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अमृता जी
हटाएंसुंदर और सहज अभिव्यक्ति |सादर अभिवादन |
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर! सादर अभिवादन!
हटाएंबहुत सुंदर शब्द चयन, बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार भारती जी।
हटाएंवाह एक से बढ़ कर एक क्षणिकाएँ ।बहुत खूब ।अंतिम लाजवाब ।
जवाब देंहटाएंआपके सराहना पा कर सृजन सार्थक हुआ । बहुत बहुत आभार आपका🙏
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