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शुक्रवार, 21 मई 2021

"नाराजगी"

बादल!

सावन में अब की 

बरसो तो…

लाना कुछ ऐसा

जिससे हो 

इम्यूनिटी बूस्ट

जरूरत है उसकी

मनु संतानों को

जो रख सके

उनके श्वसन को मजबूत

चन्द्र देव!

बड़े इठला रहे हो

यह ठसक

किस काम की ?

जब...

सदियों से तुम्हारी प्रशंसा में 

 कसीदे पढ़ने वालों की

  नींव...

 दरक रही है धीरे-धीरे

सुनो !

 जड़-चेतन साझा सहभागी हैं

प्रकृति के ..,

हम भी उन्हीं की संतान हैं

और माँ की नजर में तो

 सभी समान है

माना कि..

हो गई मानव से कुछ गलतियां

 खुद को सृष्टि में सबसे 

ताकतवर और बुद्धिमान 

समझने की गलतफहमियां

अब बस भी करो…

कितनी सजा और दिलवाओगे

 अगर न रहा मनुज

तो अपने आप में अधूरेपन की

सजा तुम भी तो पाओगे


***

शनिवार, 15 मई 2021

"प्रश्न"

काम से कभी कोई,

 थकता  कहाँ था  ।

उलझनों से दौर से,

डरता कहाँ था   ।।


सांसों से बंधे हैं, 

सबके जीवन- सूत्र ।

आज जो मंजर है कल 

 सोचा कहाँ था ।।


जीत में जश्न क्या,

हार पर विमर्श क्या ?

जीव तो जीव ही था, 

 आकड़ा कहाँ था  ।।


 अपने में खोया ,

कुछ जागा कुछ सोया ।

 पहले मन कभी इतना 

अकेला कहाँ था ।।


 रेत के सागर से रखी

 मीठे जल सी चाह। 

  दुनिया में  मुझसा नासमझ

कोई दूसरा कहाँ था ।।


***

रविवार, 2 मई 2021

।। क्षणिकाएं।।

                 

लबों को रहने दो खामोश

काफी है, 

आँखों की मुस्कुराहट ।

बर्फ ही तो है

इस आँच से ,

बह निकलेगी ।

**

हौंसला और जिजिविषा

 देन है तुम्हारी ।

 विश्वास की डोर का 

छोर भी ,

तुम्हीं से बंधा है ।

जानती हूँ 

रात के आँचल के छोर से,

यूं ही तो बंधी होती है ।

उजली भोर के,

सुनहरे आँचल की गाँठ ।

**

 कई बार

अनुभूत पलों का,

मुड़ा-तुड़ा कोई पन्ना ।

बाँचना चाहती हैं आँखें ,

मगर 

इज़ाज़त कहाँ देता है ,

जटिल बुनावट वाला विवेक ।

समझदारी के फेर में

कस कर मूंद  देता है ,

सुधियों भरा संदूक ।

**