कई दिनों से...
अक्षरों के ढेरी से
तलाश रही हूँ
कुछ अनकहा सा..
जिसमें भावों की
मज्जा का अभाव न हो
संवेदनाओं के
वितान में..
प्राणों का वास हो
भूसे के ढेर से
सुई की तरह
बस..
उन्हीं की खोज में हूँ
ऐसे समय में
सिमट रहा है
मन कच्छप सदृश
तृष्णा के
अनन्त सागर से
नहीं जानती
यह पड़ाव...
एकाग्र और स्थितप्रज्ञ
भाव का
प्रार्दुभाव है
या फिर..
उद्देश्यहीनता का
अंतहीन सिलसिला
***
【चित्र : गूगल से साभार】
सिमट रहा है
जवाब देंहटाएंमन कच्छप सदृश
तृष्णा के
अनन्त सागर से
नहीं जानती
यह पड़ाव...
एकाग्र और स्थितप्रज्ञ
भाव का
प्रार्दुभाव है
या फिर..
उद्देश्यहीनता का
अंतहीन सिलसिला, मन की सुंदर अनुभूतियों को शब्दों में बयां कर गई आपकी ये अनूठी रचना ।सादर नमन ।
सराहना भरी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।जिज्ञासा जी हार्दिक आभार आपका।
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक
हटाएंआभार सर।
बहुत सुंदर रचना, मीना दी।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक
हटाएंआभार ज्योति जी।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 04 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" मेरे सृजन को शामिल करने के लिए सादर आभार यशोदा जी।
हटाएंकई दिनों से...
जवाब देंहटाएंअक्षरों के ढेरी से
तलाश रही हूँ
कुछ अनकहा सा..
जिसमें भावों की
मज्जा का अभाव न हो
संवेदनाओं के
वितान में..
प्राणों का वास हो
भूसे के ढेर से
सुई की तरह
बस..
उन्हीं की खोज में हूँ
बहुत खूब कहा मीना जी,बेहतरीन रचना हमेशा की तरह , हार्दिक शुभकामनाएं
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से स्नेहिल आभार ज्योति जी।
हटाएंरचना मनन करने योग्य है मीना जी । मनन ही कर रहा हूं पढ़कर ।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ..हृदयतल से आभार जितेन्द्र जी।
हटाएंसुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक
हटाएंआभार शिवम् जी।
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 05-04 -2021 ) को 'गिरना ज़रूरी नहीं,सोचें सभी' (चर्चा अंक-4027) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
चर्चा मंच पर मेरे सृजन को शामिल करने के लिए सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी।
हटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से स्नेहिल
हटाएंआभार अनीता जी।
एक बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक
हटाएंआभार सवाई सिंह राजपुरोहित जी।
बहुत सुन्दर् और सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ..हृदयतल से सादर आभार सर ।
हटाएंवाह मीना जी...कुछ अनकहा सा..
जवाब देंहटाएंजिसमें भावों की
मज्जा का अभाव न हो
संवेदनाओं के
वितान में..
प्राणों का वास हो
भूसे के ढेर से
सुई की तरह
बस..ये जो शब्द है ना 'बस' ..यही तो बस नहीं होता...बहुत खूब लिखा मन को झंकृत करने वाला
आपकी उर्जावान प्रतिक्रिया सदैव मनोबल संवर्द्धन करती है अलकनंदा जी । हृदयतल से हार्दिक आभार ।
हटाएंअंतहीन सिलसिला में ही बिना तलाशे मोती भी मिलता है इस कृति के सदृश । अति सुन्दर कथ्य और सृजन ।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना से सृजन को मान मिला और मुझे अपार हर्ष ।
हटाएंबेहतरीन सारगर्भित रचना
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक
जवाब देंहटाएंआभार भारती जी!
आत्म मंथन करती नये चिंतन लिए सारगर्भित रचना मीना जी आपकी रचनाएं नाशक के तीर हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
आपकी सुन्दर और स्नेहिल प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ कुसुम जी ! हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंनहीं जानती
जवाब देंहटाएंयह पड़ाव...
एकाग्र और स्थितप्रज्ञ
भाव का
प्रार्दुभाव है
या फिर..
उद्देश्यहीनता का
अंतहीन सिलसिला
दुविधायुक्त असमंजस की मानसिक दशा का काव्यात्मक आख्यान... साधुवाद प्रिय मीना जी 🙏
वर्षा जी सृजन सार्थक हुआ आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से
जवाब देंहटाएंहृदयतल से स्नेहिल आभार आपका🙏
कुछ कहा-कुछ अनकहा, मन की अनुभूतियों को शब्दों में पिरोया गया लाज़बाब सृजन मीना जी,सादर नमन
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक
हटाएंआभार कामिनी जी!
खुद से उलझते मन की प्रगाढ़ अनुभुतियों की सशक्त अभिव्यक्ति प्रिय मीना जी | अच्छा लगा पढ़कर | हार्दिक शुभकामनाएं आपके लिए |
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु जी सृजन सार्थक हुआ आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से हृदयतल से स्नेहिल आभार आपका🙏
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