ईर्ष्या और रंजिश के भाव...
फसल के रुप में उगते तो नहीं ।
बस अमरबेल से पल्लवित हो जाते हैं ।
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हाथ मिलाने भर से क्या होना है..,
गले लग कर भी अपनापा महसूस नहीं होता ।
दिल की जमीनें भी अब ऊसर होना सीख गई है ।।
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ऑनलाइन मंगवाया सामान कभी कभी…,
दरवाजों पर पड़ा पूछता सा लगता है कुशलक्षेम ।
कभी-कभी संवेदनाएँ यूं भी दिखती हैं ।।
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शहर और गाँव उदास व गमगीन हैं..,
इन्सान भी हताशा और निराशा में डूबा है ।
'कोरोना' को फिर से भूख लगी है ।।
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