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रविवार, 21 मार्च 2021

।।दोहे।।

होली के त्यौहार पर, बढ़ती कीमत देख ।

घनी घटा सी घिर गई, आकुलता की रेख ।।


जीवन-यापन प्रश्नचिन्ह, हाल हुए बेहाल ।

सुरसा मुख सी बन गई, महंगाई विकराल ।।

                                       

साल भर से झेल रहे, कोरोना की मार ।

अंक गणित के आकड़ें, मंदी में बेकार ।।


रंग अबीर गुलाल अब, बीते युग की बात ।

बस दो ग़ज का फासला, होली की सौगात ।।


मैं अपनी इतनी बड़ी, मुझ सम कोऊ नाहि ।

मानव मन ऐसे बसी, ज्यों कुंभी जल माहि ।।


***





34 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती सराहना हेतु हार्दिक आभार सर।

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  2. बहुत सुंदर दोहे एक से बढ़कर एक।
    सादर

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  3. उत्साहवर्धन करती सराहना हेतु हार्दिक आभार अनीता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-3-21) को "सीमित है संसार में, पानी का भण्डार" (चर्चा अंक 4014) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच के आमन्त्रण के लिए हृदय से आभार कामिनी जी।

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  5. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती सराहना हेतु सादर आभार सर।

      हटाएं
  6. वाह , मीना जी ... हर दोहा तीर सा ही लग रहा ... सटीक ...

    अब तो न त्यौहार मानाने का मन , और न ही मनाने के लिए कोई संग .

    फिर भी गुलाल अबीर मेरी तरफ से लगा लीजियेगा :)

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    उत्तर
    1. आपको सृजन पसन्द आया लेखन को सार्थकता मिली..हृदयतल से आभार । गुलाल अबीर संग आपको भी मेरी तरफ से होली की अग्रिम शुभकामनाएं:)🙏

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  7. साल भर से झेल रहे, कोरोना की मार ।

    अंक गणित के आकड़ें, मंदी में बेकार ।।

    सार्थक और सुंदर दोहे

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    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती सराहना हेतु हार्दिक आभार

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  8. बहुत सुंदर और सार्थक दोहे। आपको बधाईयाँ और शुभकामनाएँ।

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    1. उत्साहवर्धन करती सराहना हेतु हार्दिक आभार विरेन्द्र जी।

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  9. जीवन-यापन प्रश्नचिन्ह, हाल हुए बेहाल ।

    सुरसा मुख सी बन गई, महंगाई विकराल ।।

    बहुत सटीक सुन्दर एवं सार्थक दोहे।

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    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सुधा जी।

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  10. दुखते रग पर दोहों ने मानो हाथ रख दिया हो । बस आह ...

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    1. आपकी स्नेहिल उपस्थिति ने सृजन सार्थकता दी..हृदय से आभार अमृता जी ।

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  11. उत्तर
    1. सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार अनुराधा जी।

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  12. मैं अपनी इतनी बड़ी, मुझ सम कोऊ नाहि ।
    मानव मन ऐसे बसी, ज्यों कुंभी जल माहि ।।

    बहुत सही और बड़ी गहरी बात लिखी है आपने प्रिय मीना जी .... आत्ममुग्धता अहंकार को जन्म देती है और फिर अहंकार इस तरह पूरे व्यक्तित्व को ढंक लेता है जैसे जलकुंभी पूरे तालाब को ढांक लेती है।
    बहुत बढ़िया... साधुवाद 🙏

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    उत्तर
    1. आपकी प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया से लेखनी धन्य हुई प्रिय वर्षा जी 🙏 हृदयतल से असीम आभार आपका🙏

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  13. आपकी कविता बहुत ही अच्छी है मीना जी । वैसे मेरा मत यह है कि जो लोग अपनों के निकट हैं, उन्हें मन से भय त्याग कर त्योहार अवश्य मनाना चाहिए । जीवन में छोटी-छोटी ख़ुशियां भी न रहें तो जीने का अर्थ ही क्या ? यह वायरस तो सदा के लिए आया है । इसके भय से क्या हम जीना ही छोड़ दें ?

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    उत्तर
    1. आपकी समझाइश भरी प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से
      आभार जितेन्द्र जी। महामारी लगभग सौ वर्ष में आ ही जाती है किसी न किसी रूप में..यहाँ दोहे में मैं या मेरी नहीं समग्र मानव समुदाय की फिक्रमंदी है । जिसमें गंभीर बीमारियों से ग्रस्त और बुजुर्ग समुदाय आता है । मेरे मन में मानवता के नाते उनकी सुरक्षा का भाव पनपा है । वे भी तो हमारे अपने ही हैं।। आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए पुन:आभार आपका🙏

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  14. होली के अवसर पर बढ़िया दोहे पढ़कर बहुत अच्छा लगा। सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपको बधाई।

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    उत्तर
    1. आपकी शुभेच्छा सम्पन्न सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार विरेन्द्र जी।

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  15. बहुत अच्छे दोहे ... सच है की महंगाई की मार ने हर त्यौहार को कुछ फीका कर दिया है पर फिर भी चाहे दूरी रख के ... त्यौहार मनाना चाहिए ...
    बहुत शुभकामनायें होली की ...

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    उत्तर
    1. रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं सहित हार्दिक आभार नासवा जी ।

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  16. आपकी लिखी कोई रचना  सोमवार 29 मार्च 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं सहित आपका हार्दिक आभार पांच लिंकों का आनंद पर सृजन'मधुमास'को साझा करने हेतु।

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  17. यथार्थपूर्ण समसामयिक दोहे, सारगर्भित रचना ।

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    उत्तर
    1. सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी ।

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  18. बहुत सुंदर और बहुत ही सही बात कही आपके सुंदर दोहों ने,सभी खूबसूरत है, हार्दिक बधाई हो आपको

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    उत्तर
    1. सृजन का मान बढ़ाती प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ ज्योति जी।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"