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शुक्रवार, 5 मार्च 2021

"एक कविता"

                     


गहमागहमी..

 बेतहाशा हताशा 

के दौर में ..

मन की निराशा

किसी कलमकार के 

मन की..

अंत:सलिला

 बन बहती है

काग़ज और कलम

 के साथ

नहीं उकेरे जाते 

चंद अक्षर..

एक संगतराश 

जैसे हाथ मिलते हैं 

दिलो-दिमाग के साथ

और 

अनगढ़ से भावों को

तराशते हैं ..

अभिव्यक्ति में

जो दीप्त है

ऊषा किरण सी

खिलते पुष्प सी

कभी-कभी

अश्रुबिंदु सी..

ढलती हैं

करूणा के सागर में

तब जा कर …

सृजित होती है

शिशु मुस्कान सी 

एक कविता..


***



28 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 05 मार्च 2021 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" रचना साझा करने हेतु सादर आभार यशोदा जी।

      हटाएं
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-०३-२०२१) को 'निसर्ग महा दानी'(चर्चा अंक- ३९९७) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर रचना को प्रस्तुति में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. सराहना भरे शब्दों के लिए हार्दिक आभार सर !

      हटाएं
  4. हर सृजन में पीड़ा होती है । बिना दर्द कैसे हो नव सृजन ।
    कविता का प्रादुर्भाव कैसे होता है ,खूबसूरत शब्दों में बयाँ किया है ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया से लेखनी को मान मिला.. हृदयतल से हार्दिक आभार आदरणीया संगीता जी 🙏🙏

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  5. प्रसव पीड़ वो ही जाने, जिसे पीड़ सहा हो।।।। आपने कवि के मनोभावों को शब्दों में खूबसूरती से पिरोया है।
    साधुवाद आदरणीया मीना जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया से लेखनी को मान मिला.. हृदयतल से हार्दिक आभार आदरणीय पुरुषोत्तम जी 🙏🙏

      हटाएं
  6. तब जा कर …
    सृजित होती है
    शिशु मुस्कान सी
    एक कविता..

    बिलकुल सही...।
    बहुत अच्छी, हृदयग्राही कविता

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया मेरी लेखनी के लिए सम्बल है वर्षा जी !हार्दिक आभार 🌹🙏🌹

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  7. मीना जी
    कविता का होना मतलब प्रसवपीड़ा से होकर गुजरना है।
    यूं ही शब्दों के ढेर को कविता नहीं कहा जा सकता।
    कविता कोई जीवित हस्ती है।
    आपने कमाल लिखा है।
    गुजरे वक़्त में से...

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    उत्तर
    1. सृजन पर सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली ..आपकी अनमोल टिप्पणी के लिए हृदय से आभारी हूँ रोहित जी । सदैव की तरह आपकी रचना "गुजरे वक्त में से.. गहन चिंतन लिए लाजवाब कृति है ।

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  8. उत्तर
    1. सराहना भरे शब्दों लेखन को मान मिला हार्दिक आभार सर

      हटाएं
  9. उत्तर
    1. सराहना भरे शब्दों के लिए हार्दिक आभार सर !

      हटाएं
  10. तब जा कर …

    सृजित होती है

    शिशु मुस्कान सी

    एक कविता..

    बहुत ही सुंदर लाज़बाब सृजन,सादर नमन आपको मीना जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना भरे शब्दों लेखन को मान मिला हार्दिक आभार कामिनी जी !

      हटाएं
  11. उत्तर
    1. सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी!

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  12. सच कहा आपने मीना जी,
    जाने कितने जज्बातों,झंझावातों ।
    आंसुओं की बारातों । के साथ एक कविता का सृजन होता है ..सुंदर अभिव्यक्ति है आपकी ..नमन आपको ..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की...हृदयतल से आभार जिज्ञासा जी ।

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  13. सुंदर सार्थक सृजन मीना जी, सच कहा आपने कविता का जन्म अपने आप में एक संघर्ष है , दिमाग और परिस्थितियों का संघर्ष जो पन्नों तक आकर उतने से पहले कितने पड़ावों से गुजरता है।
    सुंदर गहन भाव।
    सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया मेरी लेखनी के लिए सम्बल है कुसुम जी!हार्दिक आभार 🌹🙏🌹

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  14. सुंदर सृजन। एक कविता का सृजन कितना मुश्किल है अच्छे से समझ आ गया है। आपको महिला दिवस की ढेरों बधाइयाँ।

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    उत्तर
    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की
      वीरेंद्र जी । हार्दिक आभार प्रतिक्रिया एवं शुभकामनाओं हेतु🙏

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"