झरें होंगे चाँदनी मे ,
हरसिंगार...
निकलेंगे अगर घर से,
तो देख लेंगे ।
नीम की टहनी पर,
झूलता सा चाँद..
मिला फिर से अवसर,
तो देखने की सोच लेंगे।
शूल से चुभें,
और द्वेष से सने..
आ गिरे सिर पर ,
वो पल तो झेल लेंगे।
जिन्दगी छोटी सी,
और उलझनें हजार..
फुर्सत से बैठेंगे कभी,
तो गिरहें खोल लेंगे।
कैसे करनी है पार,
जीवन की नैया...
बनेंगे मांझी और सोचेंगे,
तो हल खोज लेंगे।
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【चित्र : गूगल से साभार】