नवनिर्माण की नींव
और ऊसर सी जमीन पर
पूरी आब से इतरा रहे हो
किसके प्रेम में हो गुलमोहर
बड़े खिलखिला रहे हो
बिछड़े संगी साथी
मन में खलिश तो रही होगी
टूटी भावनाओं की किर्चें
तुम्हें चुभी जरूर होंगी
बासंती बयार के जादू में
बहे जा रहे हो
किसके प्रेम में हो गुलमोहर
बड़े मुस्कुरा रहे हो
आज और कल की
दहलीज़ पर
मन कैसा सा हो गया है
चिंतन-मनन का पलड़ा
पेंडलुम सा बन गया है
अच्छा है तुम…,तुम हो
अपनी ही किये जा रहे हो
किसके प्रेम में हो गुलमोहर
बड़े इठला रहे हो
***
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२५-०२-२०२१) को 'असर अब गहरा होगा' (चर्चा अंक-३९८८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
चर्चा मंच पर रचना सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी।
हटाएंबेहतरीन रचना सखी।
जवाब देंहटाएंसराहना भरी उपस्थिति के लिए हार्दिक आभार सखी!
हटाएंबहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर!
हटाएंबहुत खूबसूरत मीना जी ,खिलते रतनार गुलमोहर को देख कवि मन में यह भाव सहज उठते हैं।
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सुंदरता से भाव शब्दों का गुंथन किया है ।मोहक रचना।
सस्नेह।
सृजन को सार्थकता मिली आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से..,हृदयतल से आभारी हूँ कुसुम जी ! सस्नेह ।
हटाएंवाह बहुत ही सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ अनुज शिवम् जी । हार्दिक आभार।
हटाएंबहुत सुंदर, मनमोहक अभिव्यक्ति है यह मीना जी । एक गीत याद आ गया : गुलमोहर गर तुम्हारा नाम होता, मौसम-ए-गुल को हंसाना भी हमारा काम होता ।
जवाब देंहटाएंसराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ जितेंद्र जी । हृदयतल से हार्दिक आभार।
हटाएंबहुत ही शानदार गीत..गुलमोहर की खूबसूरती के साथ-साथ उसकी वेदना भी कह गईं पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंसृजन का मर्म स्पष्ट करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी ।
हटाएंमन में खलिश तो रही होगी
जवाब देंहटाएंटूटी भावनाओं की किर्चें
तुम्हें चुभी जरूर होंगी
बासंती बयार के जादू में
बहे जा रहे हो
किसके प्रेम में हो गुलमोहर
बड़े मुस्कुरा रहे हो---गहरा सृजन...बहुत अच्छी रचना है...।
स्वागत है आपका मंथन पर 🙏 आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार संदीप शर्मा जी ।
जवाब देंहटाएंये गुलमोहर बहुत रंग दिखाता है ।।पता नहीं प्यार में मुस्कुराता है या प्यार में पढ़वाता है । बहुत खूबसूरत अंदाज़ लिखने का ।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने..आपकी सराहना से रचना मुखरित हो उठी । असीम आभार ।
हटाएंपड़वाता * पढा जाए
जवाब देंहटाएंजी :-) 🙏
हटाएंअन्तस के भावों का सुन्दर चित्रण।
जवाब देंहटाएंसराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ सर! बहुत बहुत आभार ।
हटाएंआज और कल की
जवाब देंहटाएंदहलीज़ पर
मन कैसा सा हो गया है
चिंतन-मनन का पलड़ा
पेंडलुम सा बन गया है
अच्छा है तुम…,तुम हो
अपनी ही किये जा रहे हो
किसके प्रेम में हो गुलमोहर
बड़े इठला रहे हो
बहुत खूब,काश हम भी गुलमोहर की तरह हो पाते।
शानदर सृजन मीना जी,सादर नमन
सत्य कथन कामिनी जी! आपकी सराहना पा कर सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार सहित सादर अभिवादन!
हटाएंबहुत सुंदर रचना..गुलमोहर पर गीत एवं कविताएं और भी हैं..लेकिन आपकी रचना अप्रतिम है..सादर नमन
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने..कितने गीत..कविताएं और कहानियों के कथानक बुने जाते हैं गुलमोहर के इर्दगिर्द । सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अर्पिता जी !
हटाएंसच बतलाना कि गुलमोहर के बहाने किस'उस' प्रेम को तरह-तरह से बता रहे हो ? अति सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंलेखनी का जादू चला आप पर... लेखनी धन्य हुई । आपकी प्रशंसा अनमोल है मेरे लिए ..हृदयतल से स्नेहिल आभार अमृता जी!
हटाएंआजकल गुलमोहर के साथ-साथ बाकी फूल वाले पौधे बहुत चमक रहे हैं। इतरा रहे हैं। सुंदर और बढ़िया काव्य सृजन के लिए आपको ढेरों शुभकामनाएँ। सादर।
जवाब देंहटाएंसत्य कथन वीरेन्द्र जी!आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हो उठी । असीम आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन,मीना दी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ज्योति जी । सस्नेह ।
हटाएंआज और कल की
जवाब देंहटाएंदहलीज़ पर
मन कैसा सा हो गया है.......बहुत अच्छी लगीं यह पंक्तियाँ।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हो
हटाएंउठी। असीम आभार ।