कभी अनजाने
कभी पहचानने
सांझ- सकारे
दृग बाट निहारे
मेरे मोहक अभिलाषित से पल!
आशा की बंदनवारें
मुक्त हृदय से
स्वागत मे तेरे
बाँह पसारे
मेरे मौन और मुखरित से पल!
कभी नीलकंठ बन
मिलूं शुभ्र गगन में
कभी राजहंस बन
नीलम सी झील में
मेरे झंकृत मन के शोभित से पल!
तुम अपरिभाषित
और असीमित
तेरी प्रत्याशा में
दिन-दिन गिनती मैं
मेरे सीमित और चिरप्रतीक्षित से पल!
★★★
बहुत सुंदर।🌻
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार शिवम् जी ।
हटाएंमनोभावों की शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार सर।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जितेन्द्र जी।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२०-०२-२०२१) को 'भोर ने उतारी कुहासे की शाल'(चर्चा अंक- ३९८३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
चर्चा मंच पर रचना सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी।
हटाएंतुम अपरिभाषित
जवाब देंहटाएंऔर असीमित
तेरी प्रत्याशा में
दिन-दिन गिनती मैं
मेरे सीमित से चिरप्रतीक्षित पल!
" पल" को गिनती हुई ज़िंदगी कब गुजर जाती है पता ही नहीं चलता।
मन के भावों की बड़ी ही सुंदर अभिव्यक्ति मीना जी जिसमे आप माहिर है।
आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया सदैव लेखनी को सार्थकता प्रदान करती है कामिनी जी । हृदयतल से हार्दिक आभार ।
हटाएंकितने मनहर पल ,बहुत कुछ समेटे अपने आप में । बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया अनमोल है मेरे लिए..हार्दिक आभार मैम 🙏
हटाएं'मुक्त हृदय से
जवाब देंहटाएंस्वागत मे तेरे
बाँह पसारे
मेरे मौन और मुखरित से पल!'
... अद्भुत... बहुत ही सुन्दर मनोभाव... हृदयग्राही पंक्तियाँ!
आपकी उपस्थिति ने सृजन का मान बढ़ाया.. बहुत बहुत आभार सर!
हटाएंमन के गूंथित भाव, सुंदर कोमल गहरे उतरते, जैसे प्रकृति स्वयं भाषा बन गई है।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम।
आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया अनमोल है मेरे लिए..हार्दिक आभार कुसुम जी!
हटाएंसुंदर सुकोमल भावों को समेटे आपकी ये रचना हृदयस्पर्शी है। आपको बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार वीरेंद्र जी!
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति ने सृजन का मान बढ़ाया.. बहुत बहुत आभार सर!
हटाएंनिशब्द करते सपष्ट भाव हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ!
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति ने सृजन का मान बढ़ाया.. बहुत बहुत आभार अनुज संजय जी!
हटाएंतुम अपरिभाषित
जवाब देंहटाएंऔर असीमित
तेरी प्रत्याशा में
दिन-दिन गिनती मैं
मेरे सीमित और चिरप्रतीक्षित से पल!----बहुत अच्छी और गहरी रचना है, मर्म को छूती हुई। बधाई
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सफल हुआ.. हृदयतल से हार्दिक आभार संदीप शर्मा जी 🙏
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