अपने में खोया
कुछ जागा कुछ सोया
एकाकी मन
बंजारा बन...
ठौर अपना सा ढूँढे
अब जाए कहाँ
कहने को यहाँ
किसे समझे अपना
असमंजस में डूबा..
बावरा मन मुझसे पूछे
सांसारिक बंधन
नादान न समझे
अलबेला मन
माया में उलझे
शावक सा भागे
देखे ना आगे
रोकूँ इसको कैसे...
कोई राह नहीं सूझे
***
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु सादर आभार सर!
हटाएंसुन्दर मनोभावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंसुन्दर और सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु सादर आभार सर!
हटाएंबहुत सुंदर मीना जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जितेंद्र जी!
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३०-०१-२०२१) को 'कुहरा छँटने ही वाला है'(चर्चा अंक-३९६२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
चर्चा मंच पर रचना सम्मिलित करने के लिए सहृदय आभार अनीता जी!
हटाएंसांसारिक बंधन
जवाब देंहटाएंनादान न समझे
अलबेला मन
माया में उलझे!
खुद से उलझते मन की सुंदर भावाभिव्यक्ति प्रिय मीना जी हार्दिक शुभकामनाएं|
आपकी सराहना पा कर सृजन सार्थक हुआ प्रिय रेणु जी! हार्दिक आभार 🙏🌹🙏
हटाएंबेहतरीन रचना, सत्य ही है मन की स्थिरता मन पे ही निर्भर है, पूरी रचना बहुत बढ़िया है , सादर नमन
जवाब देंहटाएंसराहना भरी प्रतिक्रिया पा कर लेखन सार्थक हुआ प्रिय ज्योति जी!हार्दिक आभार 🙏🌹🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सर!
हटाएंमन के नाना रूपों को सुंदर भाव क्षणिकाओं में सुंदर से गूंथा है मीना जी आपने जैसे मेरे भाव हो या फिर सभी को लगे शायद ये उन्हीं के भाव है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर सृजन।
सस्नेह।
आपकी स्नेहिल हृदयस्पर्शी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से मनोबल संवर्द्धन हुआ और सृजन को सार्थकता मिली । असीम आभार कुसुम जी !
हटाएं
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
31/01/2021 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
पाँच लिंकों का आनन्द में रचना सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कुलदीप जी !
हटाएंअपने में खोया
जवाब देंहटाएंकुछ जागा कुछ सोया
एकाकी मन
बंजारा बन...
ठौर अपना सा ढूँढे, हृदयस्पर्शी व भावपूर्ण रचना।
उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार सर!
हटाएंभाव पूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार उर्मिला सिंह जी !
हटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु सादर आभार सर!
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु सादर आभार सर!
हटाएंशावक सा भागे
जवाब देंहटाएंदेखे ना आगे
रोकूँ इसको कैसे...
कोई राह नहीं सूझे
मन के उलझे भावो को बहुत ही सुंदर शब्दों में पिरोया है आपने मीना जी,सादर नमन आपको
आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा..हार्दिक आभार कामिनी जी🙏🌹🙏
हटाएंयही बंजारापन मन और जीवन की खूबसूरती है । अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से असीम आभार अमृता जी!
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ ज्योति जी!
हटाएंमन के पथिक की यह रचना बहुत कुछ कहती है..
जवाब देंहटाएंमन से दूर दुनिया है..मन में लेकिन रहती है..
प्रेरक प्रसंग छेड़ने वालीं आपकी कविता बहुत अच्छी लगी..
सादर प्रणाम
कविता आपको अच्छी लगी..लेखन सफल हुआ. बहुत बहुत आभार आपका 🙏🌹
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