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शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

"सागर की व्यथा"

                          

सागर तू आज कैसे है मौन ।

अंतस् भेद की गांठें खोल ।।

अचलता नहीं प्रकृति तेरी ।

चंचलता लहरों की चेरी ।।


सोने की थाली सा सूरज ।

तल की ओर सरकता है ।।

कुंकुम तेरे अंचल में घोल ।

देखो तो फिर दिन ढलता है ।।


चाँदी सा झिलमिल वस्त्र ओढ़ ।

रजनी पकड़े घूंघट का छोर ।।

कहीं विहग बोलते हैं मध्यम ।

कहीं मलय चले गाती सरगम ।।


छाया चहुंदिशि में मधुमास ।

ऐसे तुम हो क्यों उदास ।।

धीरे से उसने गर्जना की ।

मनु संतति की भर्त्सना की ।।


प्रकृति को समरस करता हूँ ।

बन मेघ धरा पर बहता हूँ ।।

सब जीवन मुझसे पाते हैं ।

और खारा मुझे बताते हैं ।।

 

***





44 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज शुक्रवार 22 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में रचना साझा करने हेतु सादर आभार यशोदा जी।

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  2. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार सर !

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  3. मनु संतति के इस स्वभाव की चहुंओर भर्त्सना होनी ही चाहिए जो औरौं को सम्मान देना जानता ही नहीं है अपितु निज सम्मान को भी नहीं पहचानता है । अत्यंत भावपूर्ण एवं हृदय स्पर्शी सृजन के लिए हृदय तल से आभार और शुभकामनाएँ । बहुत सुंदर ।

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    1. मन में उत्साह जगाती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदय की असीम गहराइयों से हार्दिक आभार अमृता जी ।

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  4. सबकी अपनी-अपनी व्यथाएं हैं, फिर भले ही वह विशाल सागर ही क्यों न हो

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    1. सत्य कथन सर! उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार ।

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  5. सब जीवन मुझसे पाते हैं और खारा मुझे बताते हैं । बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति मीना जी ।

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी ।

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  6. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२३-०१-२०२१) को 'टीस'(चर्चा अंक-३९५५ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. चर्चा मंच पर रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत अनीता !

      हटाएं
  7. प्रकृति को समरस करता हूँ ।

    बन मेघ धरा पर बहता हूँ ।।

    सब जीवन मुझसे पाते हैं ।

    और खारा मुझे बताते हैं ।।
    बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी ।

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  8. शानदार। बहुत सुंदर सृजन।
    लाजवाब🌻👌

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    1. सराहना भरी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शिवम् जी।

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  9. "सागर की व्यथा" सही है। सुंदर सृजन के लिए आपको बधाई।

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार वीरेन्द्र जी ।

      हटाएं
  10. बहुत खूब प्रिय मीना जी. सागर से सार्थक प्रश्नों के साथ सटीक प्रतिउत्तर!!!
    प्रकृति को समरस करता हूँ ।
    बन मेघ धरा पर बहता हूँ ।।
    सब जीवन मुझसे पाते हैं ।
    और खारा मुझे बताते हैं ।।
    सागर को वाणी मिल जाती तब भी शायद इतना सटीक उत्तर दे पाना उसके लिए संभव ना हो पाता. भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और आभार 🌹🌹🙏🙏🌹🌹

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    1. उत्साह का संचार करती आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए हृदय की असीम गहराइयों से हार्दिक आभार प्रिय रेणु जी । हार्दिक आभार आपके स्नेहिल वचनों हेतु🙏🌹🙏

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  11. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर।

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  12. सागर की व्यथा को बहुत सुंदर से उकेरा है आपने, सुंदर प्रकृति का छायावादी चित्र लिए एक बेहतरीन सृजन।
    मोहक रचना मीना जी।
    सस्नेह

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    उत्तर
    1. आपकी ऊर्जात्मक सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ कुसुम जी ।

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  13. बेहतरीन एवं सुन्दर रचना

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    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार अभिलाषा जी ।

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  14. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर।

      हटाएं
  15. सोने की थाली सा सूरज ।
    तल की ओर सरकता है ।।
    कुंकुम तेरे अंचल में घोल ।
    देखो तो फिर दिन ढलता है ।।

    वाह !!!
    बहुत सुंदर प्रकृति चित्रण....
    इस उम्दा सृजन के लिए हार्दिक बधाई मीना जी 🙏🌹🙏

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  16. उत्साह का संचार करती आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए हृदय की असीम गहराइयों से हार्दिक आभार शरद जी 🙏🌹🙏

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  17. बहुत बहुत सराहनीय सुन्दर रचना |

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर!

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  18. विशालता तथा ऊर्जा का भंडार लिए सागर को भी अपनी जगह बताने के लिए इस निर्मोही संसार से निवेदन करना पड़ता है. सार्थक उद्देश्य पूर्ण रचना के लिए आपको शुभकामनाएं आदरणीय मीना जी..

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    उत्तर
    1. रचना को सारगर्भित सार्थकता देती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी🙏🌹🙏

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  19. आदरणीय / प्रिय,
    मेरे ब्लॉग "Varsha Singh" में आपका स्वागत है। मेरी पोस्ट दिनांक 24.01.2021 "गणतंत्र दिवस और काव्य के विविध रंग" में आपका काव्य भी शामिल है-

    http://varshasingh1.blogspot.com/2021/01/blog-post_24.html?m=0

    गणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभकामनाओं सहित,
    सादर,
    - डॉ. वर्षा सिंह

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    उत्तर
    1. आपको भी गणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं वर्षा जी!
      गणतंत्र दिवस के मान में सृजित ब्लॉग जगत के साथियों की रचनाओं का अनमोल संकलन संग्रहणीय है । इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई 🙏🌹🙏
      बहुत बहुत आभार मेरे सृजन को मान देने हेतु🙏🙏

      हटाएं
  20. प्रकृति को समरस करता हूँ ।
    बन मेघ धरा पर बहता हूँ ।।
    सब जीवन मुझसे पाते हैं ।
    और खारा मुझे बताते हैं ।।
    वाह!!!
    प्रकृति की सुन्दर छटा के शब्दचित्रण के सागर की व्यथा....
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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    उत्तर
    1. रचना को सारगर्भित सार्थकता देती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सुधा जी!

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  21. अति उत्तम कृति, बधाई हो आपको , रचना के साथ सबके विचार भी प्रभावशाली है नमन

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    उत्तर
    1. सराहना भरी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी !

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  22. प्रकृति को समरस करता हूँ ।

    बन मेघ धरा पर बहता हूँ ।।

    सब जीवन मुझसे पाते हैं ।

    और खारा मुझे बताते हैं ।।

    सागर के दर्द का इतना सुंदर चित्रण,लाजबाब सृजन मीना जी

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  23. सराहना भरी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी!

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"