एक अहसास..
सर्द सी छुवन लिये
स्वेटर के रेशों को चीर
समा गया रूह में
सिहरन सी भर कर
न्यूज़ में..
अभी-अभी पढ़ा-
पहाड़ों पर बर्फ़ गिरी है
तभी मैं कहूँ ...
अंगुलियाँ और नाक
यूं सुन्न से क्यों है...
छत पर हवाओं में
घुली ठंडी धूप में
नजर पसारी
तो पाया
गेहूँ की बालियों पर
भी आज…
बरफ की परत जमी है
और सरसों का
मुख मंडल ज़र्द
मगर..
धुला-धुला सा है
लगता तो यहीं है
इस बार के बसंत ने
दस्तक दे दी है
शीत के दरवाजे पर
अचानक ...
एक सूर्य किरण सी
हूक जागी मन में
एक ख़्वाहिश
कि...
कुदरत की
बर्फ़ीली परतों सी
अंतस् में जमी परतें भी
इस बार..
पिघल ही जायें
***
लाजवाब! भावातिरेक हर पंक्ति सच एहसास से लबरेज।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम मीना जी।
उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कुसुम जी ।
हटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सधु चन्द्र जी ।
हटाएंवाह ! क्या बात है
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर ।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१६-०१-२०२१) को 'ख़्वाहिश'(चर्चा अंक- ३९४८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
चर्चा मंच पर मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार 16 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
"सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता ।
जवाब देंहटाएंहूक जागी मन में
जवाब देंहटाएंएक ख़्वाहिश
कि...
कुदरत की
बर्फ़ीली परतों सी
अंतस् में जमी परतें भी
इस बार..
पिघल ही जायें
वाह बेहतरीन रचना सखी 👌👌
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी🙏🌹🙏
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी।
हटाएंइन नरम नरम एहसासों से अंतस में कुछ पिघल रहा है और सर्द सिहरन समेटे जा रही है । बस एक हल्की सी कंपकंपी ....
जवाब देंहटाएंआपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से रचना की मुखरता मिली...हृदय से बहुत बहुत आभार अमृता जी !
हटाएंबेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी🙏🌹🙏
जवाब देंहटाएंशरद ऋतु की मनोहारी ठिठुरन और सिहरन महसूस ही कर रही थी कि अचानक खिलखिलाते बसंत ने दस्तक दे दी और मन खुश बाग़बाग हो गया..बहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंआपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से रचना की मुखरता मिली...हृदय से बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी🙏🌹🙏
हटाएंएक सूर्य किरण सी
जवाब देंहटाएंहूक जागी मन में
एक ख़्वाहिश
कि...
कुदरत की
बर्फ़ीली परतों सी
अंतस् में जमी परतें भी
इस बार..
पिघल ही जायें - - प्रभावशाली लेखन शैली मुग्ध करती हुई - - साधुवाद आदरणीया।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला हृदयतल से आभार सर🙏
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर!
हटाएंहर मौसम का अपना रँग है ... अपनी विशेषता है ...
जवाब देंहटाएंपर अति में बहुत कुछ यद् आ ही जाता है ... सुन्दर भावपूर्ण रचना ...
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नासवा जी ।
हटाएंसुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार विकास जी ।
हटाएंछोटी-छोटी पंक्तियों में सुंदर भावाभिव्यक्ति । अभिनंदन मीना जी ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जितेन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब मीना जी!!. आशा संसार में जीवन और जीवट दोनो का आधार है.
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार प्रिय रेणु जी 🙏🌹🙏
हटाएंऔर सरसों का
जवाब देंहटाएंमुख मंडल ज़र्द
मगर..
धुला-धुला सा है बहुत बहुत सुन्दर
हार्दिक आभार सर !
हटाएंवाह!! बहुत ही सुंदर भवपूर्ण रचना,सादर नमन मीना जी
जवाब देंहटाएंसादन नमन सहित हार्दिक आभार कामिनी जी!
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