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मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

"आँखें"

उस पार बंधी है

लौकिक नैया 

 कौन खिवैया

तम की चादर 

कर पार..

भेद खोलना चाहती हैं


थकन भरी  है

आँखों में

बहुत दिन बीते

चैन से सोये

नींद भरे सागर में 

आँखें खोना चाहती हैं


***


34 टिप्‍पणियां:

  1. चैन से सोये
    नींद भरे सागर में
    बावरी खोना चाहती हैं
    सुंदर।

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  2. थकन भरी है

    आँखों में

    बहुत दिन बीते

    चैन से सोये

    नींद भरे सागर में

    आँखें खोना चाहती हैं

    बहुत खूब,बहुत कम शब्दों में हर दिल की व्यथा कह दी आपने,यही तो आपकी खासियत है,सादर नमन आपको

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    उत्तर
    1. रचना का मान बढ़ाती आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ कामिनी जी ! सादर नमन ।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (16-12-2020) को "हाड़ कँपाता शीत"  (चर्चा अंक-3917)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार सर !

      हटाएं
  4. थकन भरी है

    आँखों में

    बहुत दिन बीते

    चैन से सोये

    नींद भरे सागर में...बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति दी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार अनीता ।

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  5. उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है सर ! बहुत बहुत आभार आपका ।

      हटाएं
  6. बहुत अच्छी... मन को छू लेने वाली कविता प्रिय मीना जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है प्रिय वर्षा जी!
      हृदयतल से हार्दिक आभार🙏

      हटाएं
  7. थकन भरी है
    आँखों में
    बहुत दिन बीते
    चैन से सोये
    नींद भरे सागर में बहुत सुन्दर

    बहुत ही सुन्दर अभिव्यति
    सदर नमन
    आचार्य प्रताप
    प्रबंध निदेशक
    अक्षर वाणी संस्कृत सामाचार पत्रम

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    उत्तर
    1. ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आचार्य प्रताप जी 🙏
      सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार ।

      हटाएं
  8. वाह मीना जी, सदैव की भांत‍ि...नींद भरे सागर में

    आँखें खोना चाहती हैं...बहुत खूब ल‍िखा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है अलकनंदा जी!
      हृदयतल से हार्दिक आभार🙏

      हटाएं
  9. थकन भरी है
    आँखों में
    बहुत दिन बीते
    चैन से सोये
    नींद भरे सागर में
    आँखें खोना चाहती हैं

    सुन्दर प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार विकास जी।

      हटाएं
  10. थकन भरी है
    आँखों में
    बहुत दिन बीते
    चैन से सोये
    नींद भरे सागर में
    बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  11. उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है सर ! बहुत बहुत आभार आपका ।

      हटाएं
  12. उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है सर ! बहुत बहुत आभार आपका ।

      हटाएं
  13. गहरी थाकान के लम्हों को उतर जाने देना ही अच्छा है ...
    दूर पार देहने की शक्ति तभी ताज़ा रहती है ...

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  14. आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है नासवा जी ! बहुत बहुत आभार आपका ।

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत दिन बीते
    चैन से सोये
    नींद भरे सागर में...बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति दी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है बहुत बहुत आभार अनुज !

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"