सांझ की...
दहलीज़ पर
कभी हाँ…
तो कभी ना में
उलझा …
घड़ी के पेंडुलम सा
स्थिरता..
की चाह में झूलता
स्थितप्रज्ञ मन…
हक के साथ
बोनस में
जो मिल रहा है
उसकी..
चाह तो नहीं रखता
वैसे ही…
मन बेचारा
निर्लिप्त जीव है
तुम्हारी सौगातें
जो भी है...
सब की सब
सिर आँखों पर..
यहाँ..
सारा का सारा
आसमान...
कब और किसको
मिला है..
यह मन ही
पागल है...
मिठास की चाह भी
रखता है..
और वह भी
खारी सांभर से...
***
【चित्र~गूगल से साभार】
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर .
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 5 दिसंबर 2020 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,
आपका इस मान के लिए हार्दिक आभार श्वेता ।
हटाएंकभी तो उसके दिल में भी चाहत जागेगी !
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया सदैव की तरह लाजवाब करती हुई... बहुत बहुत आभार सर 🙏 आपकी उपस्थिति हमेशा उत्साहवर्धन करती है 🙏
हटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शिवम् जी.
हटाएं
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
06/12/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
पाँच लिंकों का आनन्द में रचना साझा करने हेतु सादर आभार कुलदीप जी।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-12-2020) को "उलूक बेवकूफ नहीं है" (चर्चा अंक- 3907) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
रचना को चर्चा मंच की प्रस्तुति में सम्मिलित करने हेतु सादर आभार सर ।
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर .
जवाब देंहटाएंबहुत सुगठित सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आ.आलोक जी.
हटाएंसांझ की...
जवाब देंहटाएंदहलीज़ पर
कभी हाँ…
तो कभी ना में
उलझा …
घड़ी के पेंडुलम सा
स्थिरता..
की चाह में झूलता
स्थितप्रज्ञ मन… प्रभावशाली रचना - - परिपूर्णता बिखेरता हुआ।
सारगर्भित और सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आ.शांतनु जी ।
हटाएंयहाँ..
जवाब देंहटाएंसारा का सारा
आसमान...
कब और किसको
मिला है..
यह मन ही
पागल है.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, मीना दी।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार ज्योति जी ।
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार यशवन्त जी.
हटाएंसांभर की बात खूब कही आपने ! : )
जवाब देंहटाएंअलग अलग स्वाद हैं ज़िन्दगी के!
रचना के भाव आपके मन तक पहुंचे..लेखन सफल हुआ.
हटाएंहार्दिक आभार नूपुरं जी!
मेरे ब्लॉग ग़ज़लयात्रा पर आपका स्वागत है -
जवाब देंहटाएंhttp://ghazalyatra.blogspot.com/2020/12/blog-post.html?m=1
जी अवश्य वर्षा जी ! ग़ज़लयात्रा पर उपस्थिति अवश्य होगी।
हटाएंसारा का सारा संसार तो वाकई किसी को नहीं मिलता। मन पागल है। बहुत बढ़िया। सादर।
जवाब देंहटाएंआपकी अनमोल सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार विरेन्द्र सिंह जी ।
हटाएंनिराला अंदाज ।
जवाब देंहटाएंलेखनी को सार्थकता मिली अमृता जी बहुत बहुत आभार.
हटाएंमन की बातें मन ही जानता है ...
जवाब देंहटाएंपर जरूरी है मन की बात सुनना और जीना ...
सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली.. बहुत बहुत आभार नासवा जी!
हटाएंयहाँ..
जवाब देंहटाएंसारा का सारा
आसमान...
कब और किसको
मिला है..
यह मन ही
पागल है...
मिठास की चाह भी
रखता है..
और वह भी
खारी सांभर से...
बहुत खूब,मन तो पगल ही है,लाजबाब सृजन मीना जी,सादर नमन आपको
आपकी उपस्थिति से लेखनी को सार्थकता मिली कामिनी जी बहुत बहुत आभार. सस्नेह...,
जवाब देंहटाएंमिठास की चाह भी
जवाब देंहटाएंरखता है..
और वह भी
खारी सांभर से...
.....बहुत खूब
बहुत बहुत आभार संजय भाई ! आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली ।
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