गोधूलि संग हुआ अंधेरा
तारों ने जादू बिखेरा
चाँदनी को साथ ले कर
नभ मंडल में चंद्र चितेरा
विहग की टहकार मध्यम
टहनियों के मध्य बसेरा
नीड़ की रक्षा में व्याकुल
आए ना कोई लुटेरा
रोज के चुग्गे की चिन्ता
कब होगा सुख का सवेरा
***
【चित्र~गूगल से साभार】
गोधूलि संग हुआ अंधेरा
तारों ने जादू बिखेरा
चाँदनी को साथ ले कर
नभ मंडल में चंद्र चितेरा
विहग की टहकार मध्यम
टहनियों के मध्य बसेरा
नीड़ की रक्षा में व्याकुल
आए ना कोई लुटेरा
रोज के चुग्गे की चिन्ता
कब होगा सुख का सवेरा
***
【चित्र~गूगल से साभार】
【 चित्र-गूगल से साभार 】
अनुबंध है प्रेम..
प्राण से प्राण के मध्य
ब्रह्माण्ड सा असीमित
बंधनमुक्त
मगर फिर भी..
बंधनों में ही पल्लवित
असंख्य परिभाषाओं से
अंलकृत..
मगर समय के साथ
लुप्त प्रजाति की
वस्तु जैसा हो गया है
असीम प्रगाढ़ता
ही है गहरी कड़वाहट
की नींव...
किसी राह चलते
अजनबी को
प्यार और ईर्ष्या
की नज़र से देखना
मुमकिन नहीं
नामुमकिन सा है
***
【गूगल से साभार】
☀️
दिवाली पर्व~
हरे गहन तम
मृतिका दीप ।
☀️
अमा की रात~
जगमग करती
तम मे दीप्ति ।
☀️
कोरोना काल~
दीपक महोत्सव
सादगीपूर्ण ।
☀️
🙏दीपावली महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏
नये अर्थ दे कर
दर्द...
जिंदगी को मांजता है
अंधेरों से डर कर
भागती जिंदगी की
अंगुली थाम..
ला खड़ा करता है
धूप-छाँव की
आँख-मिचौली के
आँगन में...
वक्त के साथ
जड़ पड़ी
संवेदनाओं का कोई
मोल नहीं होता
बस...
नीम बेहोशी में
अनीस्थिसिया सूंघे
मरीज सी…
अभिव्यक्ति के
नाम पर बेबस सी
कसमसाती
महसूस तो होती हैं
अभिव्यक्त ही
नहीं होती
***
उम्र भर की तलाश
अपना घर..
कितनी बार कहा-
ओ पागल!
यह तेरा अपना ही घर है
हक जताना तो सीख
समझती कहाँ है
समझ का दायरा बढ़ा
तभी से..
दादा का घर..नाना का घर..
उनकी जगह
पापा और मामा ने ली
ब्याह के बाद
श्वसुर और पति ने..
अपना तो कभी
कुछ हुआ नहीं
पहली बार जब उसने
लाड़ से कहा-
यह तेरा अपना घर..
तेरी मेहनत का फल
तब से किंकर्तव्यविमूढ़
सी खड़ी है
अधिकार जताने की
किताब कभी पढ़ी नहीं
और न ही मिली कभी सीख
बस एक जिद्द थी
मेरा क्यों नहीं..
पीढिय़ों से लड़ रही है
निजता की खातिर
आज यहाँ.. कल वहाँ
और अब..
अधिकार भाव
के शस्त्र को उसने
स्वेच्छा से रख दिया
एक कोने में...
गाड़िया लुहारों की मानिंद
***