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बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

"जी चाहता है"

जी चाहता है...

अपनी तूलिका में

लेकर सातों रंग 

रंग दूं कोरे कैनवास

भर दूं..

शब्दों की गागर से

भावशून्य सागर

खोज लूं..

सृष्टि- रहस्य 

हो जाऊँ…

अपरिचित से परिचित

निर्बल से सबल

मगर..

जानती हूँ 

मैं भी इतना

आसान कहाँ ..

लक्ष्य भेदना

अर्जुन नहीं 

मैं ...

कर्ण जैसा कुशल धनुर्धर 

बनना चाहती हूँ

अपनी राह में आए कंटक

बस...

खुद हटाना चाहती हूँ

***

24 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । सादर आभार सर🙏🙏

      हटाएं
  2. खोज लूं..

    सृष्टि- रहस्य

    हो जाऊँ…

    अपरिचित से परिचित

    निर्बल से सबल

    बस यही चाहतो जीवन जीना सिखाती है हर मुश्किल से उबरना सिखाती है
    फिर राह के कंटक खुद हटते चले जाते हैं
    लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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    उत्तर
    1. सृजन को सार्थकता देती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सुधा जी ।

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  3. अविश्वास की परिसीमाओं को तोड़ कर अथक प्रयास का छोड़ थामती यह रचना अत्यंत ही प्रभावशाली है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया ।

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    1. सृजन को सार्थकता देती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार आ. पुरूषोत्तम जी ।

      हटाएं
  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने हेतु सादर आभार आ. दिलबाग सिंह जी ।

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  5. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार सर.

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  6. आपके कैनवास से अति सुंदर रंग छिटक रहा है । मनभावन ।

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    उत्तर
    1. सृजन को सार्थकता देती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार अमृता तन्मय जी ।

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  7. बहुत ही सुंदर सराहनीय अभिव्यक्ति दी।
    सादर

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु सस्नेह आभार अनीता ।

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  8. बहुत अच्छी कविता... साधुवाद

    कृपया मेरी इस पोस्ट पर पधारने का कष्ट करें ⤵

    https://vichar-varsha.blogspot.com/2020/10/19.html?m=1

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. निमंत्रण के लिए व कविता सराहना के लिए बहुत बहुत आभार वर्षा जी ।

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  9. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार सर.

      हटाएं
  10. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार ज्योति जी।

      हटाएं
  11. अर्जुन नहीं

    मैं ...

    कर्ण जैसा कुशल धनुर्धर

    बनना चाहती हूँ

    अपनी राह में आए कंटक

    बस...

    खुद हटाना चाहती हूँ... बेहतरीन रचना सखी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु सस्नेह आभार सखी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"