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रविवार, 18 अक्टूबर 2020

"क्षणिकाएं"


जागती आँखों ने

देखे हैं चंद ख्वाब

असामान्य सी 

सामान्य परिस्थितियों में

और मन उनको 

सहेजने की 

जुगत में लगा है

✴️

जिस मोड़ पर

तुम्हें  छोड़ा था

मेरे मुड़ने के बाद भी

जिद्द में...

तुम आज भी वहीं खड़े हो

चलो …

जो भी हुआ अच्छा हुआ

सार्थक हुआ अपना यूं 

बिछड़ना भी...

मुझे हराने की चाह ने

तुम्हे पर्वत बना दिया

और मुझे … 

बहता दरिया

✴️

खुद में खो कर 

खुद के करीब रहना 

अक्सर...

सुकून ही देता है

 सुना है बाहर

अंधेरों की दुनियां 

उजालों पर भारी हैं

✴️✴️✴️

30 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत उम्दा
    शानदार अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली ।
      हृदयतल से आभार लोकेश नदीश जी ।

      हटाएं
  2. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-10-2020 ) को "उस देवी की पूजा करें हम"(चर्चा अंक-3860) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने हेतु हृदयतल से आभार कामिनी जी!

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार अमृता जी!

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर!

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर!

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनुराधा जी ।

      हटाएं
  7. तीनों एक से बढ़कर एक .... बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह मीना जी सुंदर सार्थक हृदय में उतरती अभिनव क्षणिकाएं।
    मर्म को छूते अहसास।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कुसुम जी।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"