जागती आँखों ने
देखे हैं चंद ख्वाब
असामान्य सी
सामान्य परिस्थितियों में
और मन उनको
सहेजने की
जुगत में लगा है
✴️
जिस मोड़ पर
तुम्हें छोड़ा था
मेरे मुड़ने के बाद भी
जिद्द में...
तुम आज भी वहीं खड़े हो
चलो …
जो भी हुआ अच्छा हुआ
सार्थक हुआ अपना यूं
बिछड़ना भी...
मुझे हराने की चाह ने
तुम्हे पर्वत बना दिया
और मुझे …
बहता दरिया
✴️
खुद में खो कर
खुद के करीब रहना
अक्सर...
सुकून ही देता है
सुना है बाहर
अंधेरों की दुनियां
उजालों पर भारी हैं
✴️✴️✴️
बहुत बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंशानदार अभिव्यक्ति
आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली ।
हटाएंहृदयतल से आभार लोकेश नदीश जी ।
वाह,बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार शिवम् जी ।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर.
हटाएंबहुत ही सुंदर दी 👌👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार अनुजा.
हटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार नीतीश जी.
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर.
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-10-2020 ) को "उस देवी की पूजा करें हम"(चर्चा अंक-3860) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने हेतु हृदयतल से आभार कामिनी जी!
हटाएंअनमोल मोती सदृश । आभार ।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार अमृता जी!
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर!
हटाएंक्या बात है, वाह
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर!
हटाएंवाह बेहतरीन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनुराधा जी ।
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सधु चन्द्र जी ।
हटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ज्योति जी ।
हटाएंतीनों एक से बढ़कर एक .... बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनिल डबराल जी ।
हटाएंवाह मीना जी सुंदर सार्थक हृदय में उतरती अभिनव क्षणिकाएं।
जवाब देंहटाएंमर्म को छूते अहसास।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कुसुम जी।
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