ज्योत्सना का रात पर , पहरा लगा सा है ।
आसमां का रंग भी , उजला-उजला सा है ।।
पत्तियों में खेलता ,एक शिउली का फूल ।
डालियों के कान में ,कुछ कह रहा सा है ।।
हट गया मुखौटा ,जो पहने हुए थे वो ।
तब से मन अपना भी ,कुछ भरा-भरा सा है ।।
दर्द बढ़ जाए जब ,सीमाओं से परे ।
लगता यही कि वक्त ,फिर ठहरा हुआ सा है ।।
हो थमी जिसके हाथों ,अपने समय की डोर ।
आने वाला उसी का कल ,खुशनुमा सा है ।।
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-10-2020 ) को "तमसो मा ज्योतिर्गमय "(चर्चा अंक- 3867) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने हेतु हृदयतल से आभार कामिनी जी!
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 27 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"पांच लिंकों का आनन्द" पर रचना साझा करने के लिए सादर आभार आ.रवीन्द्र सिंह जी ।
जवाब देंहटाएंहो थमी जिसके हाथों ,अपने समय की डोर ।
जवाब देंहटाएंआने वाला उसी का कल ,खुशनुमा सा है ।
–सत्य सुन्दर भावाभिव्यक्ति
उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार दी 🙏
हटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संदेश देती हुई रचना।
"हो थमी जिसके हाथों ,अपने समय की डोर ।
आने वाला उसी का कल ,खुशनुमा सा है ।"
बहुत ही अक्च्छा संदेश विशेष कर हमारे जैसे विद्यार्थियों के लिए। सुंदर रचना के लिए ह्रदय से आभार व सादर नमन। आपसे कृपया पर भी आएं। आपके प्रोत्साहन एवं आशीष के लिए आभारी रहूंगी।
आप मेरे नाम तो मेरे प्रोफाइल पर आ जाएँगी. वहां मेरे ब्लॉग के नाम कवितरंगिनी पर क्लिक करियेगा। आप मेरे ब्लॉग पर पहुंच जाएँगी। पुनः हार्दिक आभार।
स्वागत अनन्ता जी मंथन पर आपका🌹 बेहद खुशी हुई आपका परिचय जान कर । आप विद्यार्थी होने के साथ साथ बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं । मैं आपके ब्लॉग पर आई थी एक बार और आपका लिखा पढ़ा भी । आपके सृजन में कमाल की भावाभिव्यक्ति होती है । आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत मायने रखती है । हार्दिक आभार अनन्ता :-) आपकी रचनाएं पढ़ने आती रहूंगी । आमन्त्रण के लिए तहेदिल से शुक्रिया ।
हटाएंमीना जी , बहुत गजब लिखती हैं आप...कि
जवाब देंहटाएंहट गया मुखौटा ,जो पहने हुए थे वो ।
तब से मन अपना भी ,कुछ भरा-भरा सा है ।।...वाह
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ अलकनंदा जी । हार्दिक आभार आपका ।
हटाएंहो थमी जिसके हाथों ,अपने समय की डोर ।
जवाब देंहटाएंआने वाला उसी का कल ,खुशनुमा सा है ।। अतुलनीय रचना - - नमन सह।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ हार्दिक आभार एवं सादर नमस्कार .
हटाएंवाह !गज़ब दी प्रत्येक बंद कुछ पूछता-सा।
जवाब देंहटाएंसादर
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ..सस्नेह आभार अनीता🌹
हटाएंपत्तियों में खेलता ,एक शिउली का फूल ।
जवाब देंहटाएंडालियों के कान में ,कुछ कह रहा सा है ।।
शिउली के फूल का एकदम अभिनव प्रयोग...
वाह, बहुत सुंदर ग़ज़ल मीना जी,
स्नेह सहित,
- डॉ. वर्षा सिंह
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता व मान मिला ।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से बहुत बहुत आभार वर्षा जी 🙏
समय की डोर थामना -सुन्दर प्रयोग.
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दी !
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार शिवम् जी ।
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ज्योति जी ।
हटाएंहट गया मुखौटा ,जो पहने हुए थे वो ।
जवाब देंहटाएंतब से मन अपना भी ,कुछ भरा-भरा सा है ।।
बहुत सुंदर शब्दप्रयोग एवं अभिव्यक्ति।
उत्साहवर्धन करती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार मीना जी!
हटाएंअत्यंत सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार अमृता जी !
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