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सोमवार, 26 अक्टूबर 2020

"ज्योत्सना का रात पर पहरा लगा सा है"

                               

ज्योत्सना का रात पर , पहरा लगा सा है ।

आसमां का रंग भी , उजला-उजला सा है ।।


पत्तियों  में खेलता ,एक शिउली का फूल ।

डालियों के कान में ,कुछ कह रहा सा है ।।


हट गया  मुखौटा ,जो पहने हुए थे वो ।

तब से मन अपना भी ,कुछ भरा-भरा सा है ।।


दर्द बढ़ जाए जब ,सीमाओं से परे ।

लगता यही कि वक्त ,फिर ठहरा हुआ सा है ।।


हो थमी जिसके हाथों ,अपने समय की डोर ।

आने वाला उसी का कल ,खुशनुमा सा है ।।


***

28 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-10-2020 ) को "तमसो मा ज्योतिर्गमय "(चर्चा अंक- 3867) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने हेतु हृदयतल से आभार कामिनी जी!

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  2. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर!

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 27 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. "पांच लिंकों का आनन्द" पर रचना साझा करने के लिए सादर आभार आ.रवीन्द्र सिंह जी ।

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  5. हो थमी जिसके हाथों ,अपने समय की डोर ।
    आने वाला उसी का कल ,खुशनुमा सा है ।

    –सत्य सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार दी 🙏

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  6. आदरणीया मैम,
    बहुत ही सुंदर संदेश देती हुई रचना।
    "हो थमी जिसके हाथों ,अपने समय की डोर ।
    आने वाला उसी का कल ,खुशनुमा सा है ।"
    बहुत ही अक्च्छा संदेश विशेष कर हमारे जैसे विद्यार्थियों के लिए। सुंदर रचना के लिए ह्रदय से आभार व सादर नमन। आपसे कृपया पर भी आएं। आपके प्रोत्साहन एवं आशीष के लिए आभारी रहूंगी।
    आप मेरे नाम तो मेरे प्रोफाइल पर आ जाएँगी. वहां मेरे ब्लॉग के नाम कवितरंगिनी पर क्लिक करियेगा। आप मेरे ब्लॉग पर पहुंच जाएँगी। पुनः हार्दिक आभार।

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    1. स्वागत अनन्ता जी मंथन पर आपका🌹 बेहद खुशी हुई आपका परिचय जान कर । आप विद्यार्थी होने के साथ साथ बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं । मैं आपके ब्लॉग पर आई थी एक बार और आपका लिखा पढ़ा भी । आपके सृजन में कमाल की भावाभिव्यक्ति होती है । आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत मायने रखती है । हार्दिक आभार अनन्ता :-) आपकी रचनाएं पढ़ने आती रहूंगी । आमन्त्रण के लिए तहेदिल से शुक्रिया ।

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  7. मीना जी , बहुत गजब ल‍िखती हैं आप...क‍ि

    हट गया मुखौटा ,जो पहने हुए थे वो ।
    तब से मन अपना भी ,कुछ भरा-भरा सा है ।।...वाह

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ अलकनंदा जी । हार्दिक आभार आपका ।

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  8. हो थमी जिसके हाथों ,अपने समय की डोर ।

    आने वाला उसी का कल ,खुशनुमा सा है ।। अतुलनीय रचना - - नमन सह।

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    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ हार्दिक आभार एवं सादर नमस्कार .

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  9. वाह !गज़ब दी प्रत्येक बंद कुछ पूछता-सा।
    सादर

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ..सस्नेह आभार अनीता🌹

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  10. पत्तियों में खेलता ,एक शिउली का फूल ।
    डालियों के कान में ,कुछ कह रहा सा है ।।

    शिउली के फूल का एकदम अभिनव प्रयोग...

    वाह, बहुत सुंदर ग़ज़ल मीना जी,
    स्नेह सहित,
    - डॉ. वर्षा सिंह

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  11. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता व मान मिला ।
    हृदयतल से बहुत बहुत आभार वर्षा जी 🙏

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  12. हट गया मुखौटा ,जो पहने हुए थे वो ।
    तब से मन अपना भी ,कुछ भरा-भरा सा है ।।
    बहुत सुंदर शब्दप्रयोग एवं अभिव्यक्ति।

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    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार मीना जी!

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"