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अनकही व्यथा मन में दबाये
धूसर मेघ …
बिना नागा चले आते हैं
सांझ की अगवानी में
और न जाने क्यों...
ढुलक जाते हैं अश्रु बूँद से
धरा के आँचल में..
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खड़ी रहने दो
अपरिचय की दीवार
कुछ भरम..
मुस्कुराहटों में सजे
बड़े भले लगते हैं
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राख के तले
दब सोयी है चिंगारी
अपने आप में
सुलगती सी..
मत मारो फूंक !
सुनते हैं..एक फूंक से
वह दावानल भी
बन जाया करती है
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खड़ी रहने दो
जवाब देंहटाएंअपरिचय की दीवार
कुछ भरम..
मुस्कुराहटों में सजे
बड़े भले लगते हैं...बहुत ही सुंदर गागर में सागर दी।
लाजवाब 👌
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार अनीता!
हटाएंसभी क्षणिकाएं बहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी !
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार सर.
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 5 अक्टूबर 2020) को 'हवा बहे तो महक साथ चले' (चर्चा अंक - 3845) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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#रवीन्द्र_सिंह_यादव
चर्चा मंच पर मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आ. रविंद्र सिंह जी ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार सर ।
हटाएंवाह, बहुत बढ़िया🌻
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार शिवम् जी ।
हटाएंआज तो फूँकें बेताब हैं, चिंगारियों को सुलगाने के लिए
जवाब देंहटाएंयही तो चिंता की बात सर! उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार।
हटाएं"राख के तले
जवाब देंहटाएंब सोयी है चिंगारी
पने आप में
सलगती सी..
मत मारो फूंक !
सुनते हैं..एक फूंक से
वह दावानल भी
बन जाया करती है"
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सारगर्भित प्रस्तुति।
उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से सृजन का सार्थकता मिली । सादर आभार सर ।
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनीता जी।
हटाएंखड़ी रहने दो
जवाब देंहटाएंअपरिचय की दीवार
कुछ भरम..
मुस्कुराहटों में सजे
बड़े भले लगते हैं
अद्भुत, लाजवाब सार्थक क्षणिकाएं मीना जी बहुत सुंदर।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार कुसुम जी ।
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