ज्योत्सना का रात पर , पहरा लगा सा है ।
आसमां का रंग भी , उजला-उजला सा है ।।
पत्तियों में खेलता ,एक शिउली का फूल ।
डालियों के कान में ,कुछ कह रहा सा है ।।
हट गया मुखौटा ,जो पहने हुए थे वो ।
तब से मन अपना भी ,कुछ भरा-भरा सा है ।।
दर्द बढ़ जाए जब ,सीमाओं से परे ।
लगता यही कि वक्त ,फिर ठहरा हुआ सा है ।।
हो थमी जिसके हाथों ,अपने समय की डोर ।
आने वाला उसी का कल ,खुशनुमा सा है ।।
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