चले जब हाथ थामे फिर संग छोड़ना क्यों है ।
मिले कैसी भी दुश्वारी अब मुँह मोड़ना क्यों हैं ।।
बने जन्मों के साथी हैं सब सुख-दुख में साझी ।
इरादे नेक हैं अपने तो बंधन तोड़ना क्यों है ।।
यादों की गलियों में मैं बचपन को ढूंढती हूँ ।
पल-पल घटते जीवन में अमन को ढूंढती हूँ ।।
मेघों को देख दृगों में उतर आती है करूणा ।
इन्द्रधनुषी सुमनों से खिले उपवन को ढूंढती हूँ ।।
थोड़ा भरोसा है खुद पर बहुत ज्यादा नही है ।
सीमित रहेगी सदा वह यह भी तो वादा नहीं है ।।
न तो मोह की सीमा न चाहतों पर बंधन ।
रुक जाए गंतव्य से पहले धारा का इरादा नहीं है ।।
🍁🍁🍁🍁
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर.
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-०९-२०२०) को 'पिछले पन्ने की औरतें '(चर्चा अंक-३८३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
चर्चा मंच पर सृजन को मान देने के लिए हार्दिक आभार अनीता.
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सर.
हटाएंबने जन्मों के साथी हैं सब सुख-दुख में साझी ।
जवाब देंहटाएंइरादे नेक हैं अपने तो बंधन तोड़ना क्यों है ।।
वाह!!!
लाजवाब मुक्तक।
सराहनीय प्रतिक्रिया से लेखन का मान बढ़ा सुधा जी ! हार्दिक आभार.
हटाएंवाह मीना जी सार्थक कथ्य और सार्थक भाव लिए सुंदर मुक्तक ।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहनीय प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है। हार्दिक आभार कुसुम जी !
हटाएंआज की परिस्थितियों में रिश्ते-नाते और बंधन, ये सब पानी के बुलबुले जैसे हैं.
जवाब देंहटाएंक्षणभंगुरता को जानते हुए भी स्थायित्व खोजना जीवन का सार है । आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ सर 🙏
जवाब देंहटाएंचले जब हाथ थामे फिर संग छोड़ना क्यों है ।
जवाब देंहटाएंमिले कैसी भी दुश्वारी अब मुँह मोड़ना क्यों हैं ।।
बने जन्मों के साथी हैं सब सुख-दुख में साझी ।
इरादे नेक हैं अपने तो बंधन तोड़ना क्यों है ।।
बहुत खूब,इरादे नेक हो तो मुश्किलें भी आसान हो जाती है,लाज़बाब सृजन मीना जी,सादर नमस्कार आपको
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ कामिनी जी! हार्दिक आभार सहित स्नेहिल नमस्कार !
हटाएंवाह लाज़बाब सृजन।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु सादर आभार मैम .
हटाएंयादों की गलियों में मैं बचपन को ढूंढती हूँ ।
जवाब देंहटाएंपल-पल घटते जीवन में अमन को ढूंढती हूँ ।।
वाह !!!
भावपूर्ण बहुत सुंदर मुक्तक !!!
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखनी का मान बढ़ा । हार्दिक आभार शरद जी !
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